Book Title: Shraman Prabhachandra Author(s): Publisher: Z_Mahendrakumar_Jain_Nyayacharya_Smruti_Granth_012005.pdf View full book textPage 3
________________ ४/विशिष्ट निबन्ध : ३८५ "आचारानवद्यत्वं शुचिरुपस्कारः शरीरशुद्धिश्च करोति शूद्रानपि देवद्विजातितपस्विपरिकर्मसु योग्यान् ।" अर्थात्-निर्दोष आचरण, गृहपात्र आदि की पवित्रता और नित्य स्नान आदि के द्वारा शरीर शुद्धि ये तीनों बातें शद्रों को भी देव द्विजाति और तपस्वियों के परिकर्म के योग्य बना देती हैं। अब तो पुरोहित का पारा और भी गरम हो गया। वह क्रोध से बोला-राजन्, इन नास्तिकों के पास बैठने से भी प्रायश्चित्तका भागी होना पड़ेगा। "पुरोहित जी, नास्तिक किसे कहते हैं ?" हंसते हुए प्रभाचन्द्र ने पूछा। "जो वेदकी निन्दा करे वह नास्तिक" रोष भरे स्वरमें तपाक से पुरोहित ने उत्तर दिया। "नहीं, पाणिनि ने तो उसे नास्तिक बताया है जो आत्मा और परलोक आदि की सत्ता नहीं मानता। यदि वेदको नहीं माननेके कारण हम लोग नास्तिक हैं तो यह नास्तिकता हमारा भूषण ही है।" तर्कपूर्ण वाणीमें प्रभाचन्द्र ने कहा। भोज-महाराज, इस झगड़ेको समाप्त कीजिए। यदि आपकी अपनी परिभाषा के अनुसार ये नास्तिक हैं तो इनकी परिभाषा के अनुसार आप मिथ्यादृष्टि भी हैं। ये तो अपनी-अपनी परिभाषाएँ हैं। आप प्रकृत वर्णव्यवस्थापर ही चरचा चलाइए। पुरोहित-आपने शूद्रको दीक्षा देकर बड़ा अनर्थ किया है । ब्रह्माके शरीर से चारों वर्ण पृथक्-पृथक उत्पन्न हुए हैं । जन्मसे ही उनकी स्थिति हो सकती है, गुणकर्म से नहीं। प्रभाचन्द्र-ब्रह्मा में ब्राह्मणत्व है या नहीं ? यदि नहीं, तो उससे ब्राह्मण कैसे उत्पन्न हुआ ? यदि है; तो उससे उत्पन्न होनेवाले शद्र आदि भी ब्राह्मण ही कहे जाने चाहिए । ब्रह्माके मुखमें ब्राह्मणत्व, बाहु में क्षत्रियत्व, पेटमें वैश्यत्व और पैरोंमें शद्रत्व मानना तो अनुभवविरुद्ध है। इस मान्यतामें आपका ब्रह्मा भी अंशतः शूद्र हो जायगा। फिर आपको ब्रह्माजी के पैर नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वहाँ तो शूद्रत्व है। त-समस्त ब्राह्मणोंमें नित्य एक ब्राह्मणत्व है । यह ब्राह्मण माता-पितासे उत्पन्न हुए शरीर में व्यक्त होता है। अध्यापन, दानग्रहण, यज्ञोपवीतग्रहण आदि उसके बाह्य आचार है । प्रत्यक्ष से हो 'यह ब्राह्मण है' इस प्रकार का बोध होता है। प्रभाचन्द्र-जैसे हमें प्रत्यक्ष से 'यह मनुष्य है, यह घोड़ा है' इस प्रकार मनुष्य आदि जातियों का ज्ञान हो जाता है उस प्रकार 'यह ब्राह्मण है' यह बोध प्रत्यक्ष से नहीं होता अन्यथा 'आप किस जाति के हैं ?' यह प्रश्न ही क्यों किया जाता ? यदि ब्राह्मण पिता और शुद्रा माता तथा शुद्र पिता और ब्राह्मणी माता से उत्पन्न हुए बच्चोंमें घोड़ी और गधे से उत्पन्न खच्चर की तरह आकृति भेद दिखाई देता तो योनिनिबन्धन ब्राह्मणत्व माना जाता। फिर जब स्त्रियों का इस जन्ममें ही भ्रष्ट होना सुना जाता है तो अनादिकाल से आज तक कुलपरम्परा शुद्ध रही होगी यह निश्चय करना ही कठिन है । यदि ब्राह्मणत्त्व जाति गोत्वजाति की तरह नित्य है और वह यावज्जीवन बराबर बनी रहती है तो जिस प्रकार चाण्डाल के घर में रहनेवाली गायको आप दक्षिणामें ले लेते हो और उसका दूध भी पीते हो उसी तरह चाण्डाल के घरमें रही हुई ब्राह्मणी को भी ग्रहण कर लेना चाहिए क्योंकि नित्य ब्राह्मणत्व जाति तो उसमें विद्यमान है। यदि आचार भ्रष्टता से ब्राह्मणी की जाति नष्ट हो गई है तो आचारशुद्धि से वह उत्पन्न क्यों नहीं हो सकती? आप जो शद्र के अन्नसे, शद्रसे बोलनेपर, शूद्रके सम्पर्क से जातिलोप मानते हो वह भी नहीं मानना चाहिए, क्योंकि आपके मतसे जाति नित्य है उसका लोप हो ही नहीं सकता। ४-४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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