Book Title: Shraman Jivan me Panchachar Author(s): Jashkaran Daga Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 1
________________ श्रमण - जीवन में पंचाचार श्री जशकरण डागा श्रमण जीवन के पाँच मुख्य आचार हैं- ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्यचार | आचार्य संघ के प्रमुख होते हैं, अतः वे इन पंचाचारों का पालन करते और करवाते हैं । लेखक ने पंचाचार का भेद-प्रभेद सहित वर्णन कर इनका आचार्य हस्ती में प्रयोगात्मक स्वरूप दिखलाया है। -सम्पादक अखिल विश्व को शाश्वत सुख-शान्ति का संदेश देने वाली श्रमण संस्कृति का आधार पंच परमेष्ठी हैं। इसमें पाँच पद हैं। प्रथम के दो पद अरिहन्त एवं सिद्ध 'देव-पद' और शेष तीन- आचार्य, उपाध्याय तथा साधु 'गुरु-पद' हैं। वैसे 'गुरु' गरिमा की अपेक्षा विचारें तो अरिहंत-सिद्ध को 'परम गुरु ' कहा है और इस प्रकार 'गुरु' में पांचों पद समाहित हो जाते हैं। श्रमण जीवन से संबंधित आचार्य, उपाध्याय एवं साधु साधक हैं। इनमें आचार्य का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये चतुर्विध संघ को नेतृत्व प्रदान करते हैं। आचार्य का स्वरूपः आवश्यक-निर्युक्ति में कहा है Jain Educationa International 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 299 "पंचविह आयार, आयरमाणस्स तहा पभासता । आयारं दंसंत, आयरिया तेण वुच्चंति ॥ " - आवश्यक निर्युक्ति, 994 अर्थात् जो ज्ञानाचार आदि पंचाचार रूप पाँच आचारों का स्वयं पालन करते हैं और अन्यों को पालन करवाते हैं, वे आचार्य कहे जाते हैं। आचार-1 - विशुद्धि आचार्य का मौलिक गुण है। अतः जो स्वयं विशुद्ध चारित्रनिष्ठ हैं एवं अपने संघ को विशुद्ध आचार धर्म में स्थिर रखते हैं, वे आचार्य कहलाते हैं। आगमानुसार आचार्य छत्तीस गुणों से सम्पन्न होते हैं। कहा है " पंचिदिय संवरणो, वह नवविहबंभयेरं गुत्तिधरो । चउविह कसाय-मुक्को, इह अट्ठारस गुणेहि संजुत्तो ॥ पंच महव्वयजुत्तो, पंचविहायार पालण - समत्थो । पंच समिओ तिगुत्तो, इह छत्तीसगुणेहिं गुरु मझं || अर्थात् जो पांच इन्द्रियों से संवरित हैं, नौ प्रकार से ब्रह्मचर्य गुप्तियों (बार्डे) के धारक हैं, चार कषाय से विरत हैं, पांच महाव्रतों से युक्त हैं, पांच प्रकार के आचार पालने में समर्थ हैं तथा पांच For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8