Book Title: Shiksha aur Sanchar Sadhano ki Bhumika
Author(s): Durgaprasad Agarwal
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 1
________________ शिक्षा और संचार-साधनों की भूमिका 0 प्रो० दुर्गाप्रसाद अग्रवाल (स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, राजकीय महाविद्यालय, सिरोही) प्राय: यह कहा और माना जाता है कि संचार के आधुनिक साधन शिक्षा-प्रचार के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साधन हैं। रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा और मुद्रित सामग्री (पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ आदि) को इस बात का श्रेय दिया जाता है कि ये अब अधिक लोगों तक शिक्षा, ज्ञान, नैतिक मूल्यों आदि को पहुँचा रहे हैं । निश्चय ही ये सब साधन किसी भी बात का बृहत्तर समुदाय तक पहुँचाने की क्षमता रखते हैं, परन्तु यदि जरा गहरे में जाकर इस बात की पड़ताल की जाये कि संचार के ये आधुनिक साधन हमारे देश में बहत्तर समुदाय तक कौन-सा ज्ञान, कौन-सी शिक्षा और कौन-से नैतिक मूल्यों की बात पहुँचा रहे हैं तो बड़े चौंकाने वाले तथ्य सामने आयेंगे। भारत में आजादी के तीन दशकों के बाद भी अर्द्ध-साक्षरता तक की स्थिति नहीं आ पाई है, शिक्षा तो बहुत दूर की बात है । प्रौढ़ शिक्षा के सारे हो-हल्ले के बावजूद गांवों में ही नहीं, शहरों तक में एक बड़ा वर्ग ऐसे लोगों का है जिनके लिए 'काला अक्षर' वास्तव में 'भैंस बराबर' है। ऐसे लोगों के लिए लिखित या मुद्रित शब्द कोई अर्थ नहीं रखता। हमारी जनसंख्या का यह और शेष में से भी बड़ा भाग अपने जीवन, व्यवसाय, नागरिकता, नैतिकता आदि से सम्बद्ध मूलभूत बातों तक से अनभिज्ञ है। इस समुदाय तक इन बातों को पहुँचाने का एक महत्त्वपूर्ण साधन रेडियो हो सकता था परन्तु हम अपनी 'आकाशवाणी' के अतीत और वर्तमान पर दृष्टिपात करें तो यह त्रासद तथ्य सामने आता है कि यह महत्त्वपूर्ण साधन अपनी भूमिका के निर्वाह में असफल रहा है। आकाशवाणी वाले इस वहस में तो उलझे हैं कि वे अपने प्रसारणों में हारमोनियम को स्थान दें या न दें, उन्हें यह चिन्ता तो हुई है कि उनके प्रसारण लोकप्रियता में रेडियो सीलोन का मुकाबला क्यों नहीं कर पाते हैं, उन्होंने दूर-दराज के मुल्कों में हुर क्रिकेट मैचों के सीधे प्रसारण पर अपना धन व शक्ति तो खर्च की है; पर अपने श्रोताओं को शिक्षित करने में इनके अनुपात में बहुत ही कम रुचि ली है । कहने को तो आकाशवाणी से स्कूल प्रसारण, महिला जगत, ग्रामीण भाइयों का कार्यक्रम, युवा-वाणी आदि 'शिक्षा-प्रद' कार्यक्रमों का नियमित प्रसारण होता है पर अपनी स्तरहीनता और 'बेगार काटू' प्रस्तुतिकरण के कारण ये कार्यक्रम श्रोताओं में जरा भी लोकप्रिय नहीं हो पाये हैं। हमारी आकाशवाणी के दो सर्वाधिक लोकप्रिय केन्द्र हैंविविध भारती और उर्दू सर्विस । यह कहने की आवश्यकता नहीं कि इन दोनों ही केन्द्रों की लोकप्रियता का कारण इनकी फिल्म-संगीत निर्भरता है । चुनाव के दिनों में परिणाम बुलेटिनों व टेस्ट मैचों के दिनों में कमेण्ट्री को छोड़कर आकाशवाणी के शेष कार्यक्रम शायद ही कोई सुनता हो, यहाँ तक कि समाचार भी 'अमुक मन्त्री ने कहा है' शैली के कारण नितान्त रुचिहीन होते हैं, इनकी विश्वसनीयता और नवीनता का यह हाल है कि भारत का थोता भारतीय समाचारों के लिए बी० बी० सी० सुनना पसन्द करता है और राजस्थान के प्रादेशिक समाचार स्थानीय समाचार-पत्रों में प्रकाशन के बारह घण्टे बाद आकाशवाणी जयपुर से प्रसारित होते हैं। एक ओर वास्तविक ज्ञानवर्द्धक कार्यक्रमों का अभाव, नीरस प्रस्तुतिकरण और दूसरी ओर फिल्मी गीतों की भरमार । फिल्मी गीतों से क्या शिक्षा मिलती है, यह बताने की आवश्यकता नहीं । उस दुनिया में एक ही समस्या है--प्रेम, और एक ही समाधान है-लड़के-लड़की का मिलन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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