Book Title: Shiksha aur Chatra Manovigyan
Author(s): G C Rai
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 3
________________ शिक्षा और छात्र मनोविज्ञान ६. विद्यालय में पाठ्यक्रम के अतिरिक्त Co-curricular Activities जैसे खेल कूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, साहित्यिक कार्यक्रम आदि का आयोजन होना चाहिए और हर एक छात्र को इनमें से कम से कम किसी एक में भाग लेना आवश्यक हो। इससे उनके सर्वांगीण विकास में सहायता मिलेगी । ११ ७. छात्रों को सामाजिक कार्यों में, जैसे सफाई, साक्षरता, खान-पान, कृषि तथा नई तकनीक का ज्ञान कराने का कार्यक्रम (विशेषकर गाँवों में ) चलाना आवश्यक है। इससे छात्रों को समाज के लोगों के वास्तविक जीवन तथा कठिनाइयों का स्वयं ज्ञान करने तथा अनुभव करने का मौका मिलेगा और तदनुसार विद्यालय शिक्षा प्राप्ति के बाद उन्हें समाज में कार्य करने तथा समाज से समायोजित होने में आसानी होगी। ८. छात्रों को वर्ष में कम से कम एक बार शैक्षिक पर्यटन ( Educational Tour ) में भाग लेने की सुविधा अवश्य दी जाय जिससे कि वे दूसरे अच्छे विद्यालयों, समस्याओं आदि का स्वयं निरीक्षण कर सकें और उन समस्याओं, कार्यक्रमों तथा अनुभवों से फायदा उठाकर अपने विद्यालय में भी सुधार लाने का प्रयत्न करें । ६. छात्रों की शैक्षिक, व्यावसायिक तथा व्यक्तिगत समस्याओं को हल करने के लिए विद्यालय में एक निर्देशन केन्द्र (Guidance Centre) होना आवश्यक है जिसमें एक मनोवैज्ञानिक हो और वह छात्रों की मानसिक तथा वैयक्तिक जांच करके उपयुक्त मार्ग निर्देशन करे। । १०. अधिकतर विद्यालय केवल सामान्य बालकों की शिक्षा-दीक्षा तथा सम्बन्धित समस्याओं पर ही ध्यान देते हैं । पर वे असामान्य, पिछड़े, अपराधी बालकों पर ध्यान नहीं देते । परिणामस्वरूप कक्षा का तथा विद्यालय का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल पाता। इसलिए यह आवश्यक है कि मनोवैज्ञानिक तथा मनोचिकित्सक असामान्य बालकों का शीघ्रातिशीघ्र परीक्षण करके उनकी असामान्यता को दूर करने का प्रयास करे । विद्यालय में प्रत्येक मास में कम से कम एक बार मनोचिकित्सक आकर ऐसे छात्रों की जांच करे और चिकित्सा के लिए सुझाव दे । ११. छात्रों को अपनी शिक्षा प्राप्त करने के बाद उसके अनुकूल रोजगार की गारण्टी होनी चाहिए जिससे कि वे मन लगाकर पढ़ेंगे और परीक्षा में अच्छे अंक लाने का अधिक प्रयास करेंगे क्योंकि उन्हें अच्छे व्यवसाय में जाने की प्रेरणा मिलेगी और इससे छात्रों में अनुशासनहीनता की भी कमी होगी क्योंकि वे इधर-उधर की तोड़फोड़ की कार्यवाही में भाग न लेकर अपना समय अध्ययन की ओर ही अधिक लगायेंगे। " १२. छात्रों को पाठ्य पुस्तकों के अतिति अन्य विषयों का ज्ञान (जिन्हें उन्होंने नहीं लिया हो, जैसे-सामान्य ज्ञान, राजनीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, सामान्य विज्ञान, मनोविज्ञान, शरीर - विज्ञान आदि का भी आवश्यक है । इससे उनके ज्ञान का भंडार बढ़ता है तथा Synoptic Vision की भी वृद्धि होती है । अस्तु, पाठ्य विषय की पुस्तकों के अतिरिक्त उपर्युक्त प्रकार की पुस्तकें विद्यालय के वाचनालय से छात्रों को स्वाध्याय के लिए मिलनी चाहिए। इस प्रकार के स्वाध्याय पर भी परीक्षा में अंक देना आवश्यक है, इससे वे स्वाध्याय करने के लिए अधिक प्रेरित होंगे। Jain Education International १३. प्रत्येक छात्र के लिए नैतिक शिक्षा का विषय अनिवार्य होना चाहिए। इससे उन्हें विभिन्न धर्मो का नैतिकता के नियमों तथा सिद्धान्तों का ज्ञान होगा और वे नैतिक व परिश्वान बनने के लिए प्रेरित होंगे। उन्हें देश-विदेशों के वीरों की महान आत्माओं की तथा अध्यवसायी शिक्षकों तथा छात्रों की गावाएं भी बताई जायें। इससे छात्र अपने जीवन में उनके आदर्श को धारण करने के लिए प्रेरित होंगे। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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