Book Title: Shiksha aur Berojgari Author(s): G L Chaplot Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 4
________________ 0 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड .. .... moooooooooooooooooooo......................... असन्तुष्ट है ? विश्वविद्यालयों में हड़तालें क्यों होती हैं ? इसका प्रमुख कारण है---अनुशासनहीनता, बुरा आचरण और असन्तोष / इस असन्तोष का प्रमुख कारण प्रचलित शिक्षा प्रणाली है जो मात्र बेरोजगारी पैदा करती है। कितनी ही बातें ऐसी हैं जो कि इस स्थिति के लिए उत्तरदायी है। हमारी शिक्षा प्रणाली की अपनी कुछ कमजोरियां हैं। हमारी सामाजिक परम्परायें ऐसी रही हैं कि इनमें मेहनत के काम को नीची निगाह से देखा जाता है जिससे कि लोगों में सफेदपोश नौकरियों के लिए एक धुन सी सवार हो गई है। इन सबसे ऊपर एक कारण यह भी रहा है कि हमारे उद्यमकर्ता अल्पविकसित क्षेत्रों में जहाँ कि बेरोजगारी के असन्तुलन पर और जोर पड़ गया है, जाने से कतराते हैं। यही नहीं हमारे परम्परागत लघु उद्योग समाप्त हो रहे हैं। इन उद्योगों में लगे व्यक्तियों की सन्ताने थोड़ी-बहुत पढ़-लिख जाती हैं तो वह अपने पैतृक व्यवसाय को हेय दृष्टि से देखने लगती हैं और वे नौकरी की तलाश में शहरों की ओर भागते हैं। इससे शहरों पर आबादी का भार बढ़ता है तथा गाँव खाली होते रहते हैं / शहरों में भी नौकरी के अवसर सीमित हैं और वे भी बिना सम्पर्क, रिश्वत व जेक-जरिये के उपलब्ध नहीं होते, फलत निराशा व्याप्त होती है और ऐसे निराश व्यक्ति अन्त में अपराध जगत् की ओर बढ़ते हैं। ट्रेन डकैती, डाकुओं की संख्या में वृद्धि और अन्य प्रकार के अपराधों में बेरोजगारी का बहुत बड़ा हाथ है। पैतृक व्यवसाय भी पूंजी के अभाव से नष्ट हो रहे हैं। उन्हें कच्चा माल समय पर उपलब्ध नहीं होता, फिर बाजार में प्रतिस्पर्धा इतनी है कि उस माल का टिके रहना नितान्त असम्भव है। आधुनिकीकरण की ओर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है / खादी ग्रामोद्योग बोर्ड, उद्योग विभाग, बैंक, वित्त निगम, सहकारी समतियाँ आदि के माध्यम से पैतृक उद्योग-धन्धों को विकसित करने के लिए पर्याप्त प्रयास भी किये गये हैं, लेकिन शिक्षित पीढ़ी की अरुचि के कारण ये प्रयास सफल नहीं हुए हैं। तेजी से बढ़ती हुई आबादी पर अंकुश लगाना भी बेरोजगारी के समाधान का एक रास्ता है, किन्तु इन सबके मूल में शिक्षा है। जब तक शिक्षा व्यवस्था व्यावहारिक नहीं होगी तथा वह छात्रों को पैतृक रोजगार की ओर उन्मुख नही करेगी, श्रम की महत्ता को नहीं समझायेगी तथा लोगों को स्वावलम्बन का पाठ नहीं पढ़ायेगी तब तक पेरोजगारी के आंकड़े बढ़ते ही रहेंगे। वास्तव में शिक्षा और बेरोजगारी में कुछ तालमेल बैठाने के लिए एक गम्भीर चिन्तन की आवश्यकता है। इसके समाधान के लिए न केवल सरकार ही उत्तरदायी है बल्कि देश का युवावर्ग, विद्यार्थीवर्ग, उद्यमीवर्ग तथा संस्थाओं की भी अपनी जिम्मेदारियाँ हैं। जब तक एक साथ मिलकर समाधान नहीं किया जाता तब तक किसी एक मात्र का प्रयत्न अधूरा ही रह जायेगा तथा उसका कोई लाभ भी नहीं होगा। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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