Book Title: Shatrunjaya Tirthashtak Author(s): Vinaysagar Publisher: Z_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf View full book textPage 2
________________ श्रीहेमसूरिप्रणीतापभ्रंशभाषामयं शत्रुञ्जय तीर्थाष्टकम् खुडियनिविड दढनेहा नियदु वम्मह मयभंजणु, पढमपयासियधम्ममग्गु सिवपुरहसंदणु । निवसइ जत्थ जुयाइदेउ जिणवरु रिसहेसरु, सो सित्तुजगिरिंदु नमहु तित्थह अग्गेसरुं । सिरिपुंडरोय सुइ निव्वयइ जहि कारिउ भरहेसरिणं । वंदिवजइ अज्जवि सुरनरिहरिसहभवणु भत्तिब्भरिणं ॥१॥ पंचकोडिमुणिवरसमजु गुणरयणसमिद्धउ। पढमजिणह सिरिपुंडरीयगणहरु जहि सिद्धउ । पंडुसुअह पंचह वि सिद्धिकामिणि सुरकारउ । सो सित्त जगिरिंदु जयउ जगि तित्थह सारउ । मिल्लेविणु नेमिजिणिंद परि कित्तिभरिय भुवणंतरिहि । जो फरूसिउ नियपयपंकयहि तेवीसिहि तित्थंकरिहि ॥२॥ जहि दसकोडिहि द्रविड-वालिखिल्लहि नरनाह हो । पाविय-सिद्धि-समिद्धि खवियनियपावपवाह हा । दसरहसुय-सिरिराम भरहकय सिवसुहसंगमु । सो सित्तुज सुतित्थ जयउ तित्थह सव्वत्तमु । निणु गुरुमाहुप्पु जसु अइमुत्तयकेवलि कहिओ। आरुह वि जित्थु नारयरिसिहि पत्तु मुक्ख दुक्खिहि रहिओ ॥३॥ सिरिविज्जाहरचक्कवट्टि नमि-विनमि-मुणिदिहिं । विहिकोडसि सहु मुणिवराह नयसुरवर विदिहिं । जह पत्तओ सुरसुक्खु भवदुक्खनिवारणु । सो सेत्त ज सुतित्थ नमह सासयसुहकारणु । गुणवियलु पसु वि अणसणु करवि जहि हरिसिय सुरयणमहिउ । तित्थाणुभावमित्तिण सुहइ भुंजइ सुरकामिणिसहिउ ॥४॥ घरपरियणसुहनेह नियउ निठुरभंजेविणु । खउकंटयकक्करकरालकाणणपविसेविण । भीसणवग्यवराहभमिरतक्करजगणेविणु । गुरुगिरिवरसरसरिरउउरत्तु वि लंघेविणु। . इतिहास और पुरातत्त्व : १८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3