Book Title: Shatrinshika ya Shatrinshatika Ek Adhyayan
Author(s): Anupam Jain, Sureshchandra Agarwal
Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf

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Page 8
________________ १४४ अनुपम जैन एवं सुरेशचन्द्र अग्रवाल कारंजा भंडार-प्रति-२ (षट्त्रिंशतिका) कारंजा भंडार का प्रति क्रमांक ६५ पर सुरक्षित ग्रन्थ में कुल ५३ पत्र हैं। ११" x ४.७५" के आकार के प्रत्येक पत्र पर १० पंक्तियां हैं इस ग्रंथ में विविध अध्यायों का वर्गीकरण निम्नवत् है : परिकर्म व्यवहार पत्र संख्या १ से १६ तक कलासवर्ण व्यवहार पत्र संख्या १६ से ३४ तक प्रकीर्णक व्यवहार पत्र संख्या ३४ से ४० तक ... - त्रैराशिक व्यवहार पत्र संख्या ४० से ४६ तक ' वर्ग संकलितादि व्यवहार पत्र संख्या ४६ से ५३ तक "इति सार संग्रहे गणितशास्त्रे महावीराचार्यस्य कृतौ वर्ग संकलितादि व्यवहारः पंचमः समाप्तः।" उपरान्त निम्न प्रकार प्रशस्ति लिखी है "संवत् १७२५ वर्ष कार्तिक सुदि १० भौमे श्री मूल संघे सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये म० श्री सकल कोय॑न्वये भ० श्री वादिभूषण देवास्तत्प? भ० श्री रामकीर्तिदेवास्तत्पट्टे म० श्री पद्मनन्दिदेवास्तत्पट्टे म० श्री देवेन्द्रकीर्ति गुरुपदेशात् मुनि श्री श्रुतिकीर्तिस्तच्छिष्य मुनि श्री देवकीर्तिस्तच्छिष्य आचार्य श्री कल्याणकीर्तिस्तच्छिष्यरूप मुनि श्री त्रिभुवनचदेणेदं षट् त्रिंशतिका गणितशास्त्रं कर्म क्षयार्थ लिखितं ।” प्रशस्ति से स्पष्ट है कि इस ग्रन्थ का नाम ट्त्रिंशतिका है एवं उपलब्ध विवरण से स्पष्ट है कि इसमें वर्ग संकलितादि व्यवहार में जयपुर प्रति के समान ही विषय सामग्री है। ग्रंथ का परिचय देते हुए गणितसारसंग्रह ( हिन्दी संस्करण ) के परिशिष्ट में परिशिष्टकार ने लिखा है "मानों यह माधवचन्द्र विद्य का विविध ग्रंथ हो। उदयपुर प्रति :-उदयपुर में भी श्री दि० जैन बीसपंथी मन्दिर, मण्डी नाल में गणितसार संग्रह की अपूर्ण प्रति के नाम से एक पांडुलिपि सुरक्षित है। यह पांडुलिपि भी त्रिंशिका ही है। क्योंकि ५३ पत्रों वाली इस प्रति के पत्र ४६ पर "श्री वीतरागाय नमः (६) छत्तीसमेतेन संग्रह मेनिकोंबुटु । वर्ग संकलितानयन सूत्रं है एवं आगे का प्रकरण अन्य प्रतियों के समान है । इस प्रति का लेखनकाल श्रावण शुक्ला ५, शुक्रवार, संवत् १९०५ है । षट्त्रिंशिका की मौलिकता एवं कृतित्व के निर्धारण के समय गणितसारसंग्रह के वर्तमान मुद्रित संस्करण की मूल प्राचीन पांडुलिपियों से इसका ( षट्त्रिंशिका ) तुलनात्मक अध्ययन अत्यंत आवश्यक है । गणितसारसंग्रह का वर्तमान संस्करण ( हिन्दी एवं अंग्रेजी ) निम्न पाँच पांडुलिपियों' के आधार पर तैयार किया गया है १. "P" यह प्रति Government Oriental Manuscript Lib., Madras में है इसमें मात्र ५ अध्याय हैं, साथ में संस्कृत टिप्पणियां भी हैं। १. वही, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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