Book Title: Shatdravya me Pudgal Dravya
Author(s): Dharmsheelashreeji
Publisher: Z_Nanchandji_Maharaj_Janma_Shatabdi_Smruti_Granth_012031.pdf

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Page 4
________________ VPh પ. નાનજી મહારાજ જન્મશતાદિ 2 रस--आम्ल, मधुर, कटु, कषाय और तिक्त / गन्ध–सुगन्ध और दुर्गन्ध / वर्ण-कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत / जैन साहित्यमें पुद्गल और परमाणुके स्वरूप और कार्य का स्क्ष्म से सूक्ष्म विवेचन है। जैन दर्शन के परमाणु सिद्धांतकी सचाई से प्रभावित होकर Dr. G. S. Mallinathan लिखते है कि "A student of science if reads the Jain treatment ot matter will be surprised to find many corresponding ideas. अर्थात एक विज्ञान का विद्यार्थी जब जैन दर्शनका परमाणु सिद्धांत पढता है तो विज्ञान और जैन दर्शनमें आश्चर्यजनक क्षमता पाता है। पण्डित माधवाचार्य का कथन है कि आधुनिक विज्ञान के सर्वप्रथम जन्मदाता भगवान महावोर थे। परमाणु पुद्गल वर्ण, गंध, रस, स्पर्श सहित होने से रुपी है। परंतु दृष्टिगोचर नहीं होते। ऐसे अनंत परमाणु पुदगल एकत्रित होने से स्कंध बनता है। वह भी कोई कोई दृष्टिगोचर नहीं होते है। जैसे कि भाषा का शब्द, गंध के पुद्गल, हवा के पुद्गल दृष्टिगोचर नहीं होते। परन्तु आज के विज्ञानने सिद्ध कर दिया है कि, वे पुदगल दृष्टिगोचर नहीं होते तो भी टेलिव्हिजन, रेडिओ, वायरलेस, टेलिफोन टेपरेकॉर्ड, टेलिप्रिंट, फोनोग्राफ के रेकार्ड में शब्दों को पकडकर संग्रहीत किया जाता है और वे शब्द सुनाई भी देते हैं। वे रुपी है इसलिए मशीन की सहायता से पकडे जाते हैं। यह जैन दर्शनने अनेक वर्षों पहले सिद्ध कर दिया है / जैन दर्शन के तत्त्व को विज्ञान के साथ में सिद्ध किया जाता है। अतः जैन तत्त्व विज्ञान-सिद्ध है। जैन दर्शन का त्रिविध साधना मार्ग -डॉ. सागरमल जैन जैन दर्शन में मोक्ष की प्राप्ति के लिये विविध साधना मार्ग बताया गया है। तत्त्वार्थ सूत्र में सम्यक् ज्ञान, सम्यक् * दर्शन और सम्यक् चारित्र को मोक्ष मार्ग कहा गया है।' उतराध्ययन सूत्र में सम्यक् ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक् चारित्र और सम्यक तप ऐसे चतुर्विध मोक्षमार्ग का भी विधान है, किन्तु जैन आचार्यों ने तप का अन्तर्भाव चारित्र में करके इस विविध साधना मार्ग को ही मान्य किया है। त्रिविध साधना मार्ग ही क्यों ? - सम्भवतः यह प्रश्न हो सकता है कि त्रिविध साधना मार्ग का ही विधान क्यों किया गया है ? वस्तुतः विविध साधना मार्ग के विधान में जैन आचार्यों की एक गहन मनोवैज्ञानिक सूझ रही हुई है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मानवीय चेतना के तीन पहलु माने गये हैं। 1 ज्ञान 2 भाव और 3 संकल्प। चेतना के इन तीनों पक्षों के विकास के लिए त्रिविध साधना मार्ग के विधान का प्रावधान किया गया है। चेतना के भावात्मक पक्ष को सही दिशा में नियोजित करने के लिये सम्यक् दर्शन, ज्ञानात्मक पक्ष के सही दिशा में नियोजन के लिए ज्ञान और संकल्षात्मक पक्ष के सही दिशा में नियोजन के लिये सम्यक् चारित्र का प्रावधान किया गया है। * विक्रम विश्वविद्यालय के जैन दर्शन सम्बन्धी सेमीनार में पठित निबन्ध / जैन दर्शन का त्रिविध साधना मार्ग 365 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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