Book Title: Shat prabhut ka Rachnakar Kaun aur Uska Rachnakal Author(s): K R Chandra Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf View full book textPage 1
________________ षट्प्रामृत का रचनाकार कौन और उसका रचनाकाल कौन-सा? डॉ. के.आर. चंद्र अहमदाबाद..... -तुं ६ १. सिर्फ डॉ. ए.एन. उपाध्ये साहब ने प्रवचनसार की प्रस्तावना में ध्वनि परिवर्तन षट्प्राभृत के रचनाकार के विषय में जो कुछ अभिप्राय व्यक्त के साथ ६५ -तूण ९ -ऊण ३९ किया है, उसी को लेकर यह चर्चा की जा रही है। कुन्दकुन्दाचार्य -ऊणं ७ के प्रवचनसार और षट्प्राभृत की भाषा का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाए तो इन दोनों की भाषा के स्वरूप से ऐसा उपर्युक्त उदाहरणों से तुं और चुं प्रत्यय हेत्वर्थक के प्रत्यय लगता है कि ये दोनों कृतियाँ अलग-अलग काल की रचनाएँ हैं जिनका प्रयोग सं.भू. कृदन्त के लिए षट्प्राभृत में किया गया हैं, अतः किसी एक ही आचार्य की ये रचनाएँ नहीं है, ऐसा स्पष्ट है। यह प्रवृत्ति परवर्ती काल की है और अपभ्रंश काल के समीप प्रतीत होता है। इस तथ्य की स्पष्टता के लिए नमूने के रूप में ले जाती है। भाषिक प्रयोगों के कुछ उदाहरण इधर प्रस्तुत किए जा रहे हैं-- ऊपर के दोनों ग्रंथों के तुलनात्मक प्रत्ययों से स्पष्ट होता है कि प्रवचनसार की शौरसेनी भाषा से षट्प्राभूत की भाषा महाराष्ट्री प्रवचनसार भाषिक विशेषताएँ षट्पाहुड प्राकृत के अधिक नजदीक है। वर्तमान काल __-इ,-ए प्रत्ययों की संख्या ६. इन प्रयोगों के सिवाय षट्प्राभृत में अपभ्रंश भाषा के -दि, -दे, का तृ.पु. एकवचन -दि, -दे से तीन गुणी है। सदृश प्रयोगों की बहुलता है। अनेक प्रयोगों में से कछ उदाहरण ही प्रयोग का प्रत्यय नमूने के रूप में नीचे प्रस्तुत किए जा रहे हैं-- २. 'आदा' और 'आत्मन' शब्द 'आदा' और 'अप्पा' के ७. विभक्ति रहित मूल नाम शब्दों के प्रयोग तथा अन्य 'अप्पा' के विविध रूप सिवाय 'आया' भी जो परवर्ती काल का रूप है। अपभ्रंश प्रयोग ३. सिर्फ नपुंसक लिंग -णि और-इं भी क. प्रथमा एक वचन -णि विभक्ति शब्दों के लिए अनुपात १:७.५ चेइय, ४.९०, अनुगृहण, २.१०, वुत्त, ३.२१, णिम्मम (स्त्रीलिंग) प्रथमा द्वितीया ४.४९ बहुचवचन की विभक्तियाँ ४. अनुपात सप्तमी एक सिर्फ -ए और -म्मि ख. प्रथमा बहुवचन -ए, -म्हि, म्मि वचन के प्रत्यय अनुपात ५:१ वड्डमाण, १.६, सिक्खावय, २.२२, णिठभय, ४.५० मुणि, ५.१५६ ४.५२:१ शौरसेनी का मुख्य प्रत्यय ग. द्वि. ए. वचन, अप्पा, ३.१६, विणय ४.१७, गारव ५.१०४ ५. -दूण १ संबंधक -दुण कसाय ६.२६, सेवा सद्धा २.१२ -च्चा ३ भूत कृदन्त -च्चा घ. द्वि. ब. वचन सुपरीसह ५.९२ -इय १ के प्रत्ययों -इय ४ -संस्कृत च. षष्ठी ए.व. परिवार, १.१० -त्ता २ का अनुपात ध्वनि परिवर्तन वाला १ छ. सप्तमी एक वचन रहिय २.२०, सिवमग्ग ३.२, लेसा प्रत्यय वाला -त्तु१ (स्त्री) ४.३३, दंसण, ४.२९ रूप मात्र -तु २ ज. नपुं, ब.व. के प्रत्यय इ. वाले रूपों में इं को छन्द की दृष्टि से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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