Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 06
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 12
________________ / / 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // नन्दनं त्वाप्यनष्टो न नष्टो नत्वाभिनन्दन / नन्दनस्वर नत्वेन नत्वेनः स्यन्न नन्दनः देहिनो जयिनः श्रेयः सदातः सुमते हितः / देहि नोजयिनः श्रेयः स दातः सुमतेहितः वरगौरतनुं देवं वन्दे नु त्वाक्षयाजव / वर्जयाति॑ि त्वामार्याव वर्यामानोरुगौरव अपापापदमेयश्रीपादपद्म प्रभोऽर्दय / पापमप्रतिमाभो मे पद्मप्रभ मतिप्रद वन्दे चारुरुचां देव भो वियाततया विभो / त्वामजेय यजे मत्वा तमितान्तं ततामित स्तुवाने कोपने चैव समानो यन्न पावकः / भवान्नकोपि नेतेव त्वमाश्रेयः सुपार्श्वकः चन्द्रप्रभो दयोजेयो विचित्रेऽभात् कुमण्डले / रुन्द्रशोभोक्षयोमेयो रुचिरे भानुमण्डले प्रकाशयन् खमुद्भूतस्त्वमुद्धांककलालयः / विकासयन् समुद्भूतः कुमुदं कमलाप्रियः धाम त्विषां तिरोधानविकलो विमलोक्षयः / त्वमदोषाकरोस्तोनः सकलो विपुलोदयः यत्तु खेदकर ध्वान्तं सहस्रगुरपारयन् / भेत्तुं तदन्तरत्यन्तं सहसे गुरु पारयन् . 'खलोलूकस्य गोव्रातस्तमस्ताप्यति भास्वतः / कालोविकलगोघातः समयोप्यस्य भास्वतः लोकत्रयमहामेयकमलाकरभास्वते / एकप्रियसहायाय नम एकस्वभाव ते // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // // 34 // // 35 //

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