Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 04
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 267
________________ // 4 // . // 7 // // 8 // // 9 // तत्त्वतो ब्रह्मणः शास्त्रं लक्षकं न तु दर्शकम् / न चादृष्टात्मतत्त्वस्य दृष्टभ्रान्तिनिवर्तते तेनात्मदर्शनाकाङ्क्षी ज्ञानेनान्तर्मुखो भवेत् / द्रष्टुटुंगात्मता मुक्तिदृश्यैकात्म्यं भवभ्रमः आत्मज्ञाने मुनिर्मग्नः सर्वं पुद्गलविभ्रमम् / . महेन्द्रजालवद्वेत्ति नैव तत्रानुरज्यते आस्वादिता सुमधुरा येन ज्ञानरतिः सुधा / न लगत्येव तच्चेतो विषयेषु विषेष्विव सत्तत्त्वचिन्तया यस्याभिसमन्वागता इमे / / आत्मवान् ज्ञानवान् वेदधर्मवान् ब्रह्मवांश्च सः विषयान् साधकः पूर्वमनिष्टत्वधिया त्यजेत् / न त्यजेन्न च गृह्णीयात् सिद्धो विन्द्यात् स तत्त्वतः योगारम्भदशास्थस्य दुःखमन्तर्बहिः सुखम् / सुखमन्तर्बहिर्दुःखं सिद्धयोगस्य तु ध्रुवम् प्रकाशशक्त्या यद्रूपमात्मनो ज्ञानमुच्यते / सुखं स्वरूपविश्रान्तिशक्त्या वाच्यं तदेव तु सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम् / एतदुक्तं समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः ज्ञानमग्नस्य यच्छर्म तद्वक्तुं नैव पार्यते / नोपमेयं प्रियाश्लेषैर्नापि तच्चन्दनद्रवैः तेजोलेश्याविवृद्धिर्या पर्यायक्रमवृद्धितः / भाषिता भगवत्यादौ सेत्थम्भूतस्य युज्यते चिन्मात्रलक्षणेनान्यव्यतिरिक्तत्वमात्मनः / प्रतीयते यदश्रान्तं तदेव ज्ञानमुत्तमम् 258 // 10 // // 11 // // 12 // // 13 // // 14 // // 15 //

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