Book Title: Shardanjali
Author(s): Purnima A Desai
Publisher: Shikshayatan Cultural Center, Newyork USA

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Page 118
________________ सरस्वती यजता गन्तु यज्ञम् । हर्वं देवी जुजुषाणा घृताची शम्मा नो वाचमुशती शृणोतु ॥३६॥ __ राकामहं सुहवीं सुष्टुती हुवे शृणोतु नः सुभगा बोधतु त्मना । सीव्यत्वपः सूच्याच्छिद्यमानया ददातु वीर शतदायमुक्थ्यम् ॥ ३७॥ यास्तै राके सुमतयः सुपेशंसो याभिर्ददासि दाशुषे वसूनि । तार्मि! अब सुमना उपाहि सहस्रपोषं सुभगे रराणा ॥३८॥ सिनीवालि पृथुष्टके या देवानामसि स्वसी। जुषस्व हव्यमाहुतं प्रजा दैवि दिदिढि नः ॥३९॥ या सुबाहुः स्वॉरिः सुषूमी बहुसूवरी। तस्य विश्पल्य हविः सिनीवाल्यै जुहोतन ॥ ४०॥ या गुा सिनीवाली या राका या सरस्वती । इन्द्राणीमत्व ऊतयें वरुणानी स्वस्तये ।। ४१ ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ ॐ शुक्लांबरधरं विष्णु शशिवर्णं चतुर्भुजम् । प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्व विघ्नोपशान्तये ।। 114 Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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