Book Title: Sharavkachar Sangraha Part 5
Author(s): Hiralal Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 9
________________ श्रावकाचार-संग्रह ___ अन्तमें परम पूज्य श्री १०८ मुनि श्री समन्तभद्रजी महाराजका मैं किन शब्दोंमें आभार व्यक्त करूं जिनसे पूरे वर्षभर पत्रोंके द्वारा स्वास्थ्य-लाभके लिए शुभाशीर्वाद और कार्य-प्रगतिके लिए सत्प्रेरणाएँ प्राप्त होती रही हैं जिससे प्रभावित होकर मैं उनके चरण-सान्निध्यमें बैठकर तीसरे भागके सम्पादकीय वक्तव्यमें उल्लिखित विशेषताओंके साथ श्रावकाचारकी विस्तृत प्रस्तावना लिखनेके लिए उत्सुक हो रहा हूँ। पूर्वानुपूर्वीके क्रमसे नवीन उपलब्ध कुन्दकुन्दश्रावकाचारको प्रस्तुत संग्रहके चौथे भागमें विस्तृत प्रस्तावना और श्लोकानुक्रमणिकादि परिशिष्टोंके साथ दिया गया है और तदनन्तर-रचित होनेके कारण इस संग्रहमें हिन्दीकी उक्त तीन रचनाओंको दिया जा रहा है । तीनोंके रचयिताओंका संक्षिप्त परिचय, समय और उनकी विशेषताओंकी समीक्षाको प्रस्तावनामें दिया गया है। आशा है, पूर्व भागोंके समान इस भागका भी स्वाध्यायप्रेमी जन समादर करेंगे । श्री पाश्वनाथ दि जैन मन्दिर । हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री भेलपुर, वाराणसी (उ० प्र०) 3 हीराश्रम, साढूमल २७५/७८ । जिला ललितपुर (उ० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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