Book Title: Shadhol Jile ke Prachin Jain Kala Sthapatya
Author(s): Rajendrakumar Bansal
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf

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Page 1
________________ शहडोल जिले को प्राचीन जैन कला और स्थापत्य' डा० राजेन्द्र कुमार बंसल कामिक प्रबन्धक, अमलाई पेपर मिल्स, अमझाई, शहडोल शहडोल जिले को भौगोलिक एवं प्राकृतिक स्थिति तथा महत्व' शहडोल जिला, रीवा संभाग (मध्य प्रदेश) का एक प्रमुख ऐतिहासिक एवं उद्योग प्रधान जिला है। इसके पूर्व में सुरगुजा, पश्चिम में जबलपुर, उत्तर में सतना एवं सीधी तथा दक्षिण में मण्डला एवं बिलासपुर जिले है । इस जिले का अधिकांश भाग वन, पहाड़, कंदरा, गुफा, नदी, नाले, घाटी, जल-प्रपात एवं प्राचीन टीलों से आच्छादित है। प्रकृति ने वरदहस्त से इसे प्राकृतिक सौन्दर्य के उपहार प्रदान किये है। आधुनिक युग का काला सोना अर्थात् कोयला जिले के भूगर्भ में विशाल मात्रा में भरा पड़ा है। कोयले के अलावा यहाँ अग्निरक्षक मृत्तिका, बाक्साइट, गारनेट, जिप्सम, कच्चा लोहा, चूना, पत्थर, ताँबा एवं अभ्रक आदि खनिज सम्पदा विपुल मात्रा में उपलब्ध है । औद्योगिक महत्व के अतिरिक्त इस, जिले का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व भी है। पुण्य सलिला नर्मदा, सोन एवं जुहिला के उद्गम-स्थल का सौभाग्य इसी जिले में मेकल की पर्वत श्रेणियों को प्राप्त है। अमरकंटक का उल्लेख मत्स्य पुराण के १८६ एवं १८८ वें अध्याय में हुआ है । महाकवि कालीदास ने भी मेघदूत में आम्रकूट के नाम से अमरकंटक का उल्लेख किया है। इसी कारण अमरकंटक पौराणिक काल से मानव की उदात्त एवं धार्मिक भावनाओं का प्रेरणास्थल बना हुआ है। प्राकृतिक वैभव तो जिले को उदारतापूर्वक मिला ही है, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं कलात्मक वैभव की दष्टि से भी यह जिला अत्यन्त समृद्ध एवं सम्पन्न रहा है। ऐतिहासिक दृष्टि से इस जिले के पुरातत्वीय वैभव एवं प्राचीनता की जडें प्रागैतिहासिक काल की परतों की गहराई में छिपी है। इस जिले को पाषाणकालीन मानव के आश्रयदाता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। जिले के गजवाही ग्राम के समीप "लिखनामाड़ा" नामक स्थल है। यहाँ एक डोगरी में हाल की छापें है जो गेरुआ रंग की है जिसे स्थानीय लोकदेवता के रूप में पूजते हैं। वस्तुतः ये छापें हाल की सामान्य छान होकर दोहरो ज्यामितिक रेखाओं से घिरे कई चतुर्भज या चकयन्त्र है जो श्री देवकूमार मिश्र द्वारा पाषाण कालोन चित्रित शैलाश्रय निरूपित किये गये हैं। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वैदिक सभ्यता के आदि ग्रन्थ ऋग्वेद में नर्मदा नदो एवं विन्ध्याचल का नामोल्लेख नहीं है। अमरकंटक पुराण काल में प्रसिद्ध हुआ। नन्द-मौर्य काल के पश्चात् विन्ध्यक्षेत्र सातवाहन राजाओं के अन्तर्गत रहा । बांधवगढ़ के निकटवर्ती स्थानों में कुषाणकालोन ताम्र मुद्रायें एवं चन्द्रगुप्त द्वितीय को स्वर्ण मुद्रायें मिलीं। इसमें यह ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र में इनका राज्य रहा होगा। ईसा की सातवीं शताब्दि के मध्य में वामराज ने डाहल मंडल में कलचुरी साम्राज्य की नींव डाली। बाद में इसकी राजधानी त्रिपुरी बनी । यह राजवंश त्रिपुरी के चेदो या कलचुरी के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुआ। इसी राजवंश के अधीन शहडोल जिला ईसा की १२ वों शताब्दि तक रहा। इस राजवंश के पतन के साथ १३ वीं शताब्दो से जिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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