Book Title: Shaddarshan Sutra Sangraha evam Shaddarshan Vishayak Krutaya Author(s): Sanyamkirtivijay Publisher: Sanmarg PrakashanPage 12
________________ ग्रंथ परिचय दार्शनिक अभ्यास हेतु यह ग्रंथ का संकलन किया गया है। दो भाग में विभक्त प्रस्तुत संग्रहग्रंथ के प्रथम विभाग में जैन, मीमांसा, वेदांत, योग, सांख्य, न्याय और वैशेषिक दर्शन के सूत्रात्मक ग्रंथो का संग्रह किया गया है। द्वितीय विभाग में श्री जैनाचार्य एवं श्री जैनमुनिवर द्वारा विरचित षड्दर्शन विषयक १९ कृतियाँ का संग्रह किया है। प्रथम विभाग का संक्षिप्त परिचय : __ पू.आ.भ.श्री वादिदेवसूरिजी म. विरचित "प्रमाणनयतत्त्वालोक" ग्रंथ प्रथम जैनदर्शन का सूत्रात्मक ग्रंथ है। इस ग्रंथ में आठ परिच्छेद है। प्रथम परिच्छेद में प्रमाण, प्रमाण सामान्य का लक्षण और प्रामाण्य की उत्पत्ति एवं ज्ञप्ति का प्रतिपादन किया है। द्वितीय परिच्छेद में प्रमाण के प्रकार और प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरुप इत्यादि निरुपण किया है । तृतीय परिच्छेद में परोक्ष प्रमाण का लक्षण और उसके भेदों का आख्यान किया है। चतुर्थ परिच्छेद में आगम प्रमाण और स्याद्वाद सिद्धांत के स्तंभ रुप सप्तभंगी का स्वरुप बताया है। पंचम परिच्छेद में वस्तु, गुण, पर्याय, सामान्य आदि का वर्णन किया है। षष्ठ परिच्छेद में प्रमाण, फल, लक्षण एवं प्रमाणाभास इत्यादि आभासों का निरुपण किया है । सप्तम परिच्छेद में स्याद्वाद सिद्धांत का उपष्टंभक नय और उसके भेद-प्रभेदों का आख्यान है। अष्टम परिच्छेद में वाद, वादी, सभ्य और सभापति का प्रतिपादन किया है। यह जैनदर्शन का अतिमहत्त्वपूर्ण वादग्रंथ है। इसके उपर अतिविस्तृत श्री रत्नाकरावतारिका नाम की प्रसिद्ध टीका उपलब्ध द्वितीय सूत्रात्मक ग्रंथ ( जैनदर्शन का) "प्रमाणमीमंसा" है। इसके रचयिता कलिकाल सर्वज्ञ पू.आ.भ.श्री हेमचन्द्रसूरिजी म. है। दो अध्याय में विभक्त यह ग्रंथ के प्रथम अध्याय में दो आह्निक और द्वितीय अध्याय में तीन आह्निक है । प्रमाण सामान्य का लक्षण एवं प्रमाण के भेद-प्रभेदों का तर्कयुक्त पांडित्यपूर्ण विवेचन इस ग्रंथ में हुआ है। इसके उपर स्वोपज्ञ टीका उपलब्ध है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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