Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 22 Chandrapragyapti Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम
(१६)
प्रत
सूत्रांक
[8]
दीप
अनुक्रम [२०]
“चन्द्रप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र - ६ ( मूलं + वृत्ति:)
प्राभृतप्राभृत [१],
मूलं [१]
प्राभृत [१], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः सूर्यप्रज्ञप्ति आधारेण मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र [१७],उपांगसूत्र-[६] "चन्द्रप्रज्ञप्ति मूलं एवं मलयगिरि प्रणीता वृत्ति
सूर्यप्रज्ञसिवृत्तिः
( मल० )
||५||
णं तंमि माणिभद्दे चेइए सामी समोसढे, परिसा णिग्गया, धम्मो कहिओ, पडिगया परिसा' तस्मिन् काले तस्मिन् समये तस्मिन् | माणिभद्रे चैत्ये 'सामी समोसढे 'त्ति स्वामी जगद्गुरुर्भगवान् श्रीमहावीरो अर्हन् सर्वज्ञः सर्वदर्शी सप्तहस्तप्रमाणशरीरोच्छ्रयः समचतुरस्त्रसंस्थानो वज्रर्षभनाराचसंहननः कज्जलप्रतिमकालिमोपेतस्निग्धकुचितप्रदक्षिणावर्त्तमूर्धजः उत्तप्त* तपनीयाभिरामकेशान्तकेश भूमि रातपत्राकारोत्तमाङ्गसन्निवेशः परिपूर्णशशाङ्कमण्डलादप्यधिकतरवदनशोभः पद्मोत्पलसुरभिगन्धनिःश्वासो वदनविभागप्रमाणकम्बूपमचारुकन्धरः सिंहशार्दूलवत्परिपूर्णविपुलस्कन्धप्रदेशो महापुरकपाटपृथुलवक्षःस्थलाभोगो यथास्थितलक्षणोपेतः श्रीवृक्षपरिघोपमप्रलम्बबाहुयुगलो रविशशिचक्र सौवस्तिकादि प्रशस्त लक्षणो| पेतपाणितलः सुजातपार्श्वे झषोदरः सूर्यकरस्पर्शसञ्जातविकोशपद्मोपमनाभिमण्डलः सिंहवत्संवर्त्तितकटीप्रदेशो निगूढजानुः कुरुविन्दवृत्तजङ्घायुगलः सुप्रतिष्ठितकूर्म्मचारुचरणतलप्रदेशः अनाश्रवो निर्ममः छिन्नश्रोता निरुपलेपोऽपगत| प्रेमरागद्वेषश्चतुस्त्रिंशदतिशयोपेतो देवोपनीतेषु नवसु कनककमलेषु पादन्यासं कुर्वनाकाशगतेन धर्म्मचक्रेण आकाशगतेन छत्रेण आकाशगताभ्यां चामराभ्यामाकाशगतेनातिस्वच्छस्फटिक विशेषमयेन सपादपीठेन सिंहासनेन पुरतो देवैः प्रकृध्यमाणेन २ धर्म्मध्वजेन चतुर्दशभिः श्रमणसहस्रैः पटूत्रिंशत्सरायिकासहस्रैः परिवृतो यथास्वकल्पं सुखेन विहरन् यथारूपमवग्रहं गृहीत्वा संयमेन तपसा चाऽऽत्मानं भावयन् समवसृतः, समवसरणवर्णनं च भगवत औपपातिकग्रन्थादवसेयं (सू.१० यावत् ३३) 'परिसा निग्गय'त्ति मिथिलाया नगर्या वास्तव्यो लोकः समस्तोऽपि भगवन्तमागतं श्रुत्वा भगवद्वन्दनार्थं स्वस्मादाश्रयाद्विनिर्गत इत्यर्थः, तन्निर्गमश्चैवम्- 'तए णं मिहिलाए नयरीए सिंघाडगतियच उच्च चरचर म्मुहमहापहेसु
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सूत्रस्य प्रस्तावना, भगवत् महावीरस्य वर्णनं
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~ 23~
प्रस्तावना.
||५||

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