Book Title: Sarvagntva aur Uska Arth Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 7
________________ -५५६ जैन धर्म और दर्शन नमाना, दबाना या वश · लागू हो नहीं सकता । "एक अर्थात् प्रमाद को कषाय है कषाय ही में जैन करना मुमुत्तु के लिए कषाय के सिवाय अन्य वस्तु में जिससे इसका तात्पर्य यह निकलता है कि जो मुमुक्षु वश करता है वह बहुत कषायों को वश करता है और जो बहुत कषायों को वश करता है वह एक अर्थात् प्रमाद को वश करता ही है । स्पष्ट है कि नमाने की और वश करने की वस्तु जब तब ठीक उसके पहले आये हुए वाक्य में जानने की वस्तु भी 'प्रकरणप्राप्त है । आध्यात्मिक साधना और जीवन शुद्धि के क्रम तत्त्वज्ञान की दृष्टि से श्रसव के ज्ञान का और उसके निरोध का ही महत्त्व है । जिसमें कि त्रैकालिक समग्र भावों के साक्षात्कार का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है । उसमें प्रश्न उठता है तो मूल दोष और उसके विविध श्राविर्भावों के जानने का और निवारण करने का । ग्रन्थकार ने वहाँ यही बात बतलाई है । इतना ही नहीं, बल्कि उस प्रकरण को खतम करते समय उन्होंने वह भाव 'जे कोहदंसी से माणदंसो, जे माणदंसी से मायादंसी, जे मायादंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पिज्जदंसी, जे पिज्जदंसी से दोससी, जे दोसदंसी से मोहदंसी, जे मोहदंसी से गम्मदंसी, जे गन्मदंसी से जम्मदंसी, जे जम्मदंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से नरयदंसी, जे नरयदंसी से निरियदंसी, जे निरियदंसी से दुक्सदंसी ।' इत्यादि शब्दों में स्पष्ट रूप में प्रकट भी किया है । इसलिए 'जे एगं जाई' इत्यादि वाक्यों का जो तात्पर्य मैंने ऊपर बतलाया वही वहाँ पूर्णतया संगत है और दूसरा नहीं । इसलिए मेरी राय में जैन परम्परा में सर्वज्ञत्व का असली अर्थ आध्यात्मिक साधना में उपयोगी सच तत्वों का ज्ञान यही होना चाहिए; नहीं कि त्रैकालिक समग्र भावों का साक्षात्कार । 9 उक्त वाक्यों को आगे के तार्किकों ने एक समय में त्रैकालिक भावों के साक्षात्कार अर्थ में घटाने की जो कोशिश की है वह सर्वज्ञत्व स्थापन की साम्प्रदायिक होड़ का नतीजा मात्र है । भगवती सूत्र में महाबीर के मुख्य शिष्य इन्द्रभूति और जमाली का एक संवाद है जो सर्वज्ञत्व के अर्थ पर प्रकाश डालता है। जमाली महाबीर का प्रतिद्वंद्वी है । उसे उसके अनुयायी सर्वश मानते होंगे । इसलिए जब वह एक बार इन्द्रभूति से मिला तो इन्द्रभूति ने उससे प्रश्न किया कि कहो जमाली ! तुम यदि सर्वश हो तो जवाब दो कि लोक शाश्वत है या अशाश्वत ? जमाली चुप रहा तिस पर महावीर ने कहा कि तुम कैसे सर्वज्ञ ? देखो इसका उत्तर मेरे सर्व शिष्य दे सकते हैं तो भी मैं उत्तर देता हूँ कि १. स्याद्वादमंजरी का० १ । २. भगवती ६. ६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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