Book Title: Santhara Sanleshna Ek Chintan
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Soc 1000000000000000RatoPopat Y i a90000000000000000 4900-6300300500000.00D 6960%atoONARoo0900OOPARDROIRALA 1६५२ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । सन्दर्भ स्थल १. सव्वे जीवा वि इच्छंति जीविउं न मरिज्जि। -दशवकालिक ६-१० २. जीवेम शरदः शत। -यजुर्वेद ३६-२४४ ३. "रज्जुच्छेदे के घटं धारयन्ति ?" ४. (क) मरण सम नत्थि भयं। (ख) भयः सीमा मृत्युः। ५. असायं अपरिनिव्वाणं महब्भयं। -आचारांग १-२ ६. ताले जह बंधणच्चुए एवं आउखयंमि तुट्टइ। -सूत्रकृतांग २-१-३ ७. नाणागमो मच्चुमुहस्स अत्थि। -आचारांग १-४-२ ८. गहिओ सुग्गइ मग्गो नाहं मरणस्स बीहेमि। -आतुर प्रत्याख्यान ६३ ९. (क) संसारासक्तचित्तानां मृत्यु तै भवेन्नृणाम्। मोदायते पुनः सोपि ज्ञान वैराग्यवासिनाम्॥ -मृत्यु महोत्सव १७ (ख) संचित तपोधन न नित्यं व्रत नियमे संयमरतानाम्। उत्सवभूतं मन्ये मरणमनपराधवृत्तीनाम्॥ -वाचक उमास्वाति १०. भगवती २-१ ११. समवायांग १७ सूत्र ९ (मुनि कन्हैयालाल कमल) १२. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा २१२-१३, पत्र-२३० १३. मरणाणि सत्तरस देसिदाण तित्थंकरहिं जिणवयणे। तत्थ विये पंच इह संगहेणं मरणाणि वोच्छामि। -मूलाराधना आश्वास १, गा. २५, पत्र ८५ १४. प्रतिसमयमनुभूयमानायुषोऽपराऽयुर्दलिकोदयात् पूर्वपूर्वाऽयुर्दलिक विच्युतिलक्षणाः। -अभयदेववृत्ति-भगवती १३,७ १५. तत्त्वार्थराजवार्तिक २-२२ १६. (क) समवायांग, पत्र ३२ (ख) उत्तराध्ययननियुक्ति २१६ (ग) मूलाराधना विजयोदयावृत्ति, पत्र ८७ १७. (क) समवायांग, पत्र ३२ (ख) उत्तराध्ययननियुक्ति २१६ १८. (क) समवायांग, पत्र ३२ (ख) उत्तराध्ययननियुक्ति २१६ १९. (क) समवायांग, पत्र ३२ (ख) उत्तराध्ययननियुक्ति २१७ (ग) भगवती २-१, अभयदेववृत्ति, पत्र २५२ २०. (क) भगवती २-१, अभयदेववृत्ति, पत्र २५२ (ख) समवायांग १७, सूत्र ३२ (ग) उत्तराध्ययननियुक्ति २१९ २१. (क) भगवती २-१ (ख) समवायांग पत्र, ३२-३३ (ग) मूलाराधना विजयोदया टीका, पत्र ८७ २२. (क) समवायांग, पत्र ३३ (ख) उत्तराध्ययननियुक्ति २२२ २३. मूलाराधना विजयोदया टीका, पत्र ८१ २४. (क) समवायांग १७, पत्र ३२ (ख) उत्तराध्ययननियुक्ति २२२ २५. उत्तराध्ययननियुक्ति २८३ २६. (क) भगवती-२-१, पत्र २५२ (ख) उत्तरा. नि. गा. २२४ २७. (क) भगवती २-१ (ख) उत्तरा. नि. गा. २२४ २८. (क) भगवती २-१ (ख) उत्तरा. नि. गा. २२५ (ग) मूलाराधना गाथा २९, पत्र ११३ (घ) विजयोदया पत्र ११३ २९. (क) मूला. विजयो, पत्र ११३ (ख) सयमेव अप्पणो सो करेदि आउंटणादि किरियाओ। उच्चारादीणि तथा सयमेव विकिंदि चे विधिणा।। -मूला, आ. ८, गा. २०४२ ३०. (क) भगवती २-१, पत्र २५२ (ख) समवायांग, समवाय १७, पत्र ३३ (ग) उत्तरा, नि. गा. २२५ (घ) औपपातिकवृत्ति पत्र ७१ ३१. (क) गोम्मटसार, गाथा ६१ (ख) मू. आ.८, गा. २०६३ ३२. मू. आ. वि. पत्र ११३ ३३. विज. ११३ ३४. भगवती सूत्र २-१, पत्र २५२ ३५. मूला. ८ गा. २०६५ ३६. मू. आ. ८, गा. २०६८ से २०७० ३७. उत्तरा. वृ.पृ.६०२ ३८. मू. आ.२ गा.६५ विज. ३९. उत्तरा. वृ. पृ. ६०२ ४०. (क) मूला. आ.२ गा. ६५ विज. (ख) मू. आ.७ गा. २०१५ वृत्ति ४१. स्थानांगवृत्ति २-१०२ ४२. वही २-१०२ ४३. मू. आ. ७ गा. २०१५ ४४. मू. आ. ८ गा. २०६९ ४५. भगवती सूत्र ९-१, पत्र २५३ ४६. पायोपगमण मरणं भत्त पाइण्णं च इंगिणि चेव। तिविहं पंडिअमरणं साहुस्स जहुत्त जालिस्स॥ -मूला. २९ ४७. उत्त. अ. ५, ३-४ ४८. वही. अ. ५, ३-४ ४९. तं मरणं मरियर्व जेणमओ मुक्कओ होई। -मरणविभक्ति, प्रकरण १०-१४५ ५०. उत्तरा. ५ ५१. स्थानांग २,३,४ ५२. भगवती २-5 ५३. उत्तरा. प्राकृत टीका ५ ५४. उत्तरा. शान्त्याचार्य टीका 50.000000जयटाएकनायडया सराहनालयनयानल ॐ0000heoh8.0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 DORDEReadstonesianRRORoad D EODODOD.Oie PRODAPURasDabal 200028006264davgarelateralds 50.000000000000000000 000000000000018 100000000000000000

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21