Book Title: Sanskruti Sahitya ke Vikas me Jainacharyo ka Yogadan Author(s): Kasturchand Kasliwal Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 5
________________ संस्कृत साहित्य के विकास में जैनाचार्यों का योगदान | २७३ देवेन्द्रसूरि के शिष्य गुणरत्नसूरि ने क्रियारत्नसमुच्चय व्याकरण की संवत् १४६६ में रचना समाप्त की थी। हेमचन्द्र के शब्दानुशासन के आधार पर हंसुकला ने कविकल्पद्रुम की रचना करके व्याकरणरचना में एक कड़ी और जोड़ दी। महाकवि गुणाढय के समकालीन सर्ववर्मा ने महाराजा सातवाहन को पढ़ाने के लिए कातन्त्र रूपमाला की रचना की थी । यह अत्यधिक सुबोध एवं संक्षिप्त व्याकरण है तथा इस पर भी १४ टीकायें प्राप्त होती हैं। . जैनाचार्यों ने स्वयं ने व्याकरणग्रन्थों के निर्माण के साथ-साथ अन्य व्याकरणों पर भी टीकायें निबद्ध की। इनमें सारस्वतव्याकरण पर बीस से भी अधिक टीकायें उपलब्ध होती हैं । नाटक नाटक ग्रन्थों के लिखने में जैनाचार्य किसी से पीछे नहीं रहे। हस्तिमल्ल सबसे प्रमुख जैन नाट्यकार थे जिन्होंने विक्रान्तकौरव, सुलोचना नाटक, सुभद्राहरण, अंजनापवनंजय, मैथिलीकल्याण जैसे नाटक ग्रन्थ लिख कर इस क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। हस्तिमल्ल उभयभाषा-कविचक्रवर्ती की उपाधि से विभूषित थे तथा वे १३वीं शताब्दी के नाटककार थे। हेमचन्द सूरि के शिष्य रामचन्द्र सूरि प्रसिद्ध नाट्यकार थे, जिन्होंने १० नाटक ग्रन्थों की रचना करके एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। रामचन्द्र सूरि के नाटकों के नाम निम्न प्रकार हैं १. नलविलास नाटक २. कौमुदीमित्रानन्द (प्रकरण) ३. मल्लिका मकरन्द (प्रकरण) ४. निर्भय भीम (कायोग) ५. पाटवाभ्युदय (नाटक) ६. रघुविलास (नाटक) ७. रोहिणी मृगांक (प्रकरण) ८. वनमाला (नाटक) ९. सत्य हरिश्चन्द्र (नाटक) १०. राघवाभ्युदय (नाटक) सम्वत् १५९१ में वादिचन्द्र सूरि ने ज्ञानसूर्योदय नाटक की रचना समाप्त की थी। जैनाचार्यों ने स्वयं ने तो नाटक ग्रन्थों की रचना की किन्तु अन्य नाट्यकारों के नाटकों की पाण्डुलिपियों को सुरक्षित रखने में भी भारी योगदान दिया। महाकवि कालिदास, शूद्रक एवं विशाखदत्त के नाटकों की पाण्डुलिपियाँ राजस्थान के जैन ग्रन्थगारों में उपलब्ध होती हैं। पुराण साहित्य . जैनाचार्यों एवं भट्टारकों ने समय-समय पर पुराणग्रन्थों के लिखने में अपना भारी योगदान दिया। इन पुराणों के कारण संस्कृत के पठन-पाठन को अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई तथा इन पुराणों के आधार पर ही आगे कथासाहित्य का विकास हुआ। महाकाव्यों एवं चरितकाव्यों के प्रमुख स्रोत ये पूराण ही हैं। जैन पुराणों में तीर्थंकरों के जीवन परिचय के अतिरिक्त नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र, चक्रवर्ती जैसे शलाकापुरुषों के जीवन का वर्णन रहता है। धम्मो दीवो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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