Book Title: Sanskrut Kosh Sahitya ko Acharya Hemchandra ki Apurva Den
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 4
________________ Jain Edu नेमिचन्द्र शास्त्री संस्कृत कोपसाहित्य को आचार्य हेम की अपूर्ण देन ७३७ में बांधकर मथानी घुमायी जाती है, उस खम्भे का नाम विष्कम्भ [४-८९], सिक्का आदि रूप में परिणत सोना-चांदी, तांबा आदि सब धातुओं का नाम रूप्यम्, मिश्रित सोना-चांदी का नाम घनगोलक [४-११२-११३], कूंआ के ऊपर रस्सी बांधने के लिए काष्ठ आदि की बनी हुई चरखी का नाम तंत्रिका [४-१५७ ], घर के पास वाले बगीचे का नाम निष्कुट, गांव या नगर के बाहरवाले बगीचे का नाम पौरक [४-१७८ ], क्रीड़ा के लिए बनाये गए बगीचे का नाम आक्रीड या उद्यान [४-१७८ ], राजाओं के अन्तःपुर के योग्य घिरे हुए बगीचे का नाम प्रमदवन [४-१७९ ], धनिकों के बगीचे का नाम पुष्पवाटी या वृक्षवाटी [४-१७१] एवं छोटे बगीचे का नाम बुद्वाराम या प्रसीदिका [४-०१७९] आया है. प्रसाधनसामग्री सूचक शब्दावलि - अभिधानचिन्तामणि का जहाँ अनेक दृष्टियों से महत्त्व है, वहां प्राचीन भारत में प्रयुक्त होने वाली विभिन्न प्रकार की प्रसाधनसामग्री की दृष्टि से भी इस कोश में शरीर को संस्कृत करने को परिकर्म ( ३।२६६), उबटन लगाने को उत्सादन ( ३।२६६ ), कस्तुरी - कु कम का लेप लगाने को अंगराग; चन्दन अगर, कस्तूरी और कुकुम के मिश्रण को चतुःसमम्; कर्पूर अगर कंकोल, कस्तूरी और चन्दनद्रव को मिश्रित कर बनाये गये लेपविशेष को यक्षकर्दम एवं शरीरसंस्कारार्थ लगाये जानेवाले लेप का नाम वर्ति या गात्रानुलेपनी कहा गया है. मस्तक पर धारण की जाने वाली फूल की माला का नाम माल्यम्, बालों के बीच में स्थापित फूल की माला का नाम गर्भ चोटी में लटकनेवाली फूलों की माला का नाम प्रभ्रष्टकम्, सामने लटकती हुई पुष्पमाला का नाम ललामकम्, छाती पर तिर्धी लटकती हुई पुष्पमाला का नाम वैकक्षम्, कण्ठ से छाती पर सीधे लटकती हुई फूलों की माला का नाम प्रालम्बम्, शिर पर लपेटी हुई माला का नाम आपीड, कान पर लटकती हुई माला का नाम अवतंस एवं स्त्रियों के जुड़े में लगी हुई माला का नाम बालपाश्या आया है." इसी प्रकार, कान, कण्ठ, गर्दन, हाथ, पैर, कमर आदि विभिन्न अंगों में धारण किये जाने वाले आभूषणों के अनेक नाम आये हैं. इन नामों से अवगत होता है कि शरीर को सजाने की प्रथा किस-किस रूप में प्रचलित थी. प्रसाधनसामग्री में विभिन्न प्रकार के वस्त्राभूषणों साथ नाना प्रकार के सुगन्धित पदार्थ भी परिगणित थे. रेशमी, सूती और ऊनी वस्त्रों के उपयोग करने के विभिन्न तरीके ज्ञात थे. वस्त्र त्वक् तीसी, सन आदि की छाल, फल- कपास, क्रिमि-रेशम के कीड़े आदि एवं रोम - भेड़ों की ऊन या ऊंटों की ऊन से तैयार किये जाते थे. टग हरिण के रोम से भी वस्त्र तैयार किये जाते थे. इस प्रकार के वस्त्रों को शंकवम् कहा है. साड़ी के नीचे स्त्रियां साया पेटीकोट भी पहनती थीं, आचार्य हेम ने इस कोश में धनिक और उत्तमकुल की महिलाओं के द्वारा साड़ी के नीचे धारण किये जाने वाले पेटीकोट के चण्डातकम् और चलनक ये दो नाम लिखे हैं। सामान्य परिवार की स्त्रियां जिस पेटीकोट को पहनती थीं, उसका नाम चलती कहा ६ पिक एवं है. ब्लाउज भी अनेक प्रकार के उपयोग में लाये जाते थे तथा इनके सीने के भी अनेक तरीके प्रचलित थे. उनके चोल, नाम वस्यों की विविधता के साथ सीने के प्रकारों पर भी प्रकाश डालते हैं. पलंगपोश का रिवाज भी समाज में था, सूती पलंगपोश, जो कि गद्दे के ऊपर बिछाया जाता था, निचोल कहलाता ( ३।३४० ) था. साधारणतः बिछाने के काम में आनेवाली चादर प्रच्छदपट ( ३।३४० ) कही जाती थी. निचुल ( ३।३४० ) उस पलंगपोश का नाम है जो धनिक और सम्पन्न व्यक्तियों के यहाँ उपयोग में लाया जाता था. यह रेशमी होता था. इसके ऊपर कारीगरी भी की जाती थी, साधारण और मध्यमकोटि के व्यक्ति जिस चादर का उपयोग करते थे, उत्तरच्छद ( ३।३४० ) कहा है. उसे १. देखें- काण्ड ३ श्लोक ३१४-३२१. २. देखें --- काण्ड ३ श्लोक ३२०-३२१. ३. त्वक्कलकिमिरोमम्यः संभवाच्चतुर्विधम् - ३१३३२. ४. अभिघात चिन्तामणि ३/३३३. ५. वही ३।३३८. ६. वही ३१३३८. ७. वही ३ ३३८. brary.org

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