Book Title: Sanskrut Kosh Sahitya ko Acharya Hemchandra ki Apurva Den Author(s): Nemichandra Shastri Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 3
________________ wwww ७६६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय नाम सूर्य किरण चन्द्र शिव गौरी ब्रह्मा विष्णु अग्नि Jain Educommended अमरकोश की पर्यायसंख्या ३७ ११ २० ४८ १७ २० ३६ ३४ अभिधानचिन्तामणि की पर्यायसंख्या ७२ ३६ ३२ ७७ ३२ ४० ७५ ५१ पर्यायवाची शब्दों की सख्याधिक्य के अतिरिक्त ऐसे नवीन शब्द भी समाविष्ट हैं, जो संस्कृति और साहित्य के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण हैं. इस कोश में जिसके वर्ण या पद लुप्त हों - जिसका पूरा-पूरा उच्चारण नहीं किया गया हो उस वचन का नाम 'ग्रस्तम्' और थूकसहित वचन का नाम 'अम्बूकृतम्' आया है. शुभवाणी- कल्याणप्रद वचन का नाम 'कल्या', हर्ष-क्रीड़ा से युक्त वचन के नाम 'चर्चरी' और 'चर्मरी' एवं निन्दापूर्वक उपालम्भयुक्त वचन का नाम 'परिभाषण' आया है. जले हुए भात के लिए मिस्सटा [३ ६०] और दग्धिका नाम आये हैं. गेहूं के आटे के लिए समिता [३-६६ ] और जौ के आटे के लिए चिक्कस [३-६६ ] नाम आए हैं. नाक की विभिन्न बनावट वाले व्यक्तियों के विभिन्न नामों का उल्लेख भी इस बात का सूचक है कि आचार्य हेम को मानवशास्त्र की कितनी अधिक जानकारी थी. इन्होंने चिपटी नाकवाले को नतनासिक, अवनाट, अवटीट और अवम्रट, नुकीली नाकवाले को खरणास, छोटी नाकवाले को नःक्षुद्र और क्षुद्रनासिक, खुर के समान बड़ी नाकवाले को खुरणस एवं ऊंची नाकवाले को उन्नस और उग्रनासिक कहा है. " नृतत्त्वविज्ञान का अध्ययन करनेवाले शरीर के अन्य अंगोपांगों के साथ नाक एवं केशरचना को विशेष महत्त्व देते हैं तो मानवसमूहों के प्रजातीय वर्गीकरण के लिए शरीर के विभिन्न अंगों की नापजोख रक्तसमूहविश्लेषण, मांसपेशियों का गठन, त्वचा, आंख और केश के रंग एवं केश रचना का उपयोग करते हैं, पर नाक और आंख की बनावट प्रमुख स्थान रखती है. हेम ने इस दृष्टि से मंगोलॉयड, काकेसायड, अफ्रीकी नीग्रॉयड, मेलानेशियन और पालीनेशियन प्रजातियों के मानवों का चित्र उपस्थित कर दिया है. अंगोपांगों के विभिन्न नामों के विवेचन से यह सहज में अवगत किया जा सकता है कि हेम को नृतत्त्वज्ञान की गहरी जानकारी थी. १. पति-पुत्र से हीन स्त्री के लिए निरा [१-१२४] जिस स्त्री को दाढ़ी या मूंछ के बाल हो, उसको नरमालिनी [३-११५/वही शाली के लिए कुल [३-२१६] और छोटी वाली के लिए हाजी, यन्त्रणी और केलिकुंचिका [३-२११] नाम आये हैं. छोटी शाली के इन नामों को देखने से अवगत होता है कि उस समय में छोटी शाली के साथ हँसी-मजाक करने की प्रथा थी. साथ ही पत्नी की मृत्यु के पश्चात् छोटी शाली से विवाह भी किया जाता था. इसी कारण इसे केलिकुंचिका कहा गया है. दाहिनी और बायीं आँखों के लिए पृथक्-पृथक् शब्द इसी कोश में आये हैं. दाहिनी आंख का नाम मानवीय और बायीं आंख का नाम सौम्य [३-२४०] कहा गया है. इसी प्रकार जीभ के मैल को कुलुकम् और दांत के मैल को पिप्पिका [२-२२६] कहा गया है के पंखे का नाम पवित्रम्, कपड़े के पंखे का नाम आलावर्तम् एवं ताड़ के पंखे का नाम व्यजनम् [३-३५१-५२] आया है. नाव के बीचवाले डण्डों का नाम पोलिंदा, ऊपरवाले भाग का नाम मंग एवं नाव के भीतर जमे हुए पानी को बाहर फेंकनेवाले चमड़े के पात्र का नाम सेकपात्र या सेचन [३-५४२ ] बताया है. ये शब्द अपने भीतर साँस्कृतिक इतिहास भी समेटे हुए हैं. छप्पर छाने के लिए लगायी गई लकड़ी का नाम गोपानसी [४-७५], जिस १. अभिधानचिन्तामणि ३।११५. yary.orgPage Navigation
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