Book Title: Sanskrit Mandirant Praveshika
Author(s): Anantchandravijay
Publisher: Chandroday Charitable and Religious Trust
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________________ સંસ્કૃત બીજી ચોપડી जाड्यं ह्रीमति गण्यते. व्रतरुची दम्भ: शुचौ कैतवं शूरे निघृणता ऋजो विमतिता दैन्यं प्रियालापिनि / तेजस्विन्यकलिप्तता मुखरता वक्तर्यशक्तिः स्थिरे __तत्को नाम गुणो भवेत्सुगुणिनां यो दुर्जनैर्नाङ्कित: // 24 // लोभश्चेदगुणेन किं पिशुनता यद्यस्ति किं पातकैः ___ सत्यं चेत्तपसा च किं शुचि मनो यद्यस्ति तीर्थन किम् / सौजन्यं यदि किं निजः सुमहिमा यद्यस्ति किं मण्डनै: __ सद्विद्या यदि किं धनैरपयशो यद्यस्ति किं मृत्युना।।२।। न कश्चिच्चण्डकोपानामात्मीयो नाम भूभुजाम् / होतारमपि जुह्वानं स्पृष्टो दहति पावकः // 26 // आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण लध्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात् / दिनस्य पूर्वार्धपरार्धभिन्ना छायेव मैत्री खलसज्जनानाम् // 27 // मृगमीनसजनानां तृणजलसंतोषविहितवृत्तीनाम् / लुब्धकधीवरपिशुना निष्कारणवैरिणो जगति // 28 // पाञ्छा सजनसंगमे परगुणे प्रीतिगुरौ नम्रता विद्यायां व्यसनं स्वयोषिति रतिर्लोकापवादाद्भयम् / भक्तिः शुलिनि शक्तिरात्मदमने संसर्गमुक्ति: खले ज्वेते येषु वसन्ति निर्मलगुणास्तेभ्यो नरेभ्यो नमः // 29 // प्रदानं प्रच्छन्नं गृहमुपगते संभ्रमविधि: प्रित्यं कृत्वा मौनं सदसि कथनं नाप्युपकृते: / अनुत्सेको लक्ष्म्यां निरमिभवसाराः परकथा: __ सतां केनोष्टिं विषममसिधाराव्रतमिदम् // 30 // संपत्सु महतां चित्तं भवत्युत्पलकोमलम् / आपत्सु च महाशैलशिलासंघातकर्कशम् // 31 / / संतप्तायसि संस्थितस्य पयसो नामापि न ज्ञायते मुक्ताकारतया तदेव नलिनीपत्रस्थितं राजते /

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