Book Title: Sanshodhan Virddh Kattarta Gheri Chintano Vishay Author(s): Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 8
________________ June-2006 दा.त. एक मूतिने आपणे हजारो वर्ष पुराणी मानता होईए, अने तेने इतिहासादि 500-700 वर्ष पहेलांनी ज होवानुं पुरवार/प्रमाणित करी आपे तो ते शक्य छे अने तेमां नाराज थवानुं कोई वाजबी कारण पण नथी. ऊलटुं, आq थाय तो आपणी भ्रान्ति-भ्रान्त मान्यता तूटे छे, अने विश्वसमाजमां सत्यनी तथा सत्यनो स्वीकार करनार समाज तरीके आपणी प्रतिष्ठा वधे छे. एकांगी दृष्टिने विकृत थतां वार लागती नथी, तेथी सर्वतोमुख दृष्टि हवे अपनाववी अनिवार्य छे. --x Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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