Book Title: Sanmarg Pravrutti Hetu Guru Updesh ka Mahattva
Author(s): Rucha Sharma
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 125 रखकर न्यायालयों में शपथ दिलाई जाती है, 'महाभारत' पर नहीं। 'गीता' तो 'महाभारत' का अंश है। फिर 'गीता' पर ही क्यों? 'महाभारत' के ऊपर हाथ रखकर शपथ क्यों नहीं दिलाई जाती ? शायद गुरुपदेश की महत्ता और औचित्य का यह प्रमाण है। यदि इसे 'प्रमाण' न भी मानें तो भी गुरु के उपदेश (= गीता) का 'मान' तो है ही, क्योंकि कृष्ण को जगत् का गुरु कहा गया है- 'कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ' और 'गीता' कृष्ण की वाणी है । कादम्बरी का गुरूपदेश अर्जुन को दिए गए 'गीतोपदेश' की भाँति ही 'शुकनासोपदेश' भी गुरूपदेश की महत्ता में प्रमाणस्वरूप है। ‘महाभारत' के अंश 'गीता' की भाँति ही 'शुकनासोपदेश' भी ‘कादम्बरी””” का एक अंश है। यह भी शुकनास द्वारा युवराज चन्द्रापीड को दिया गया गुरु का उपदेश ही है। गुरु, शिष्य, शिक्षा एवं शिक्षण का प्रकरण हो और वहाँ ' कादम्बरी' का उल्लेख करना छूट जाए तो वह प्रकरण अधूरा है। इस प्रकरण के लिए तो 'कादम्बरी' अकेले ही पर्याप्त है। गुरु की महिमा का जो सुन्दर एवं समुचित विस्तृत वर्णन ' कादम्बरी' गद्य काव्य में दिया गया है। वैसा सारगर्भित वर्णन अन्यत्र असम्भव नहीं तो दुर्लभ अवश्य है । 'कादम्बरी' महाकवि बाणभट्ट का वह गद्य-काव्य है जिसमें उसने कोई विषय अछूता नहीं छोड़ा है जो परवर्ती कवियों या साहित्यकारों के लिए नवीन विषय बन सके । 'कादम्बरी' पदार्थवर्णन पढ़ने के पश्चात् संसार के पदार्थों का अलग से वर्णन करना बाण के वर्णन का उच्छिष्ट (जूठन ) मात्र प्रतीत होता है। अतः कहा गया है 912 'बाणोच्छिष्टं जगत् सर्वम्" गुरु- माहात्म्य को भी बाणभट्ट ने अपना वर्ण्य विषय बनाया है । 'कादम्बरी' का 'शुकनासोपदेश' नामक अंश इस सन्दर्भ में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। आज के इस भौतिकवादी दौर में भी 'कादम्बरी' का कोई न कोई अंश संस्कृत-गद्य के पाठ्यक्रम के अन्तर्गत अवश्य पढ़ाया जाता है। विद्यार्थियों के लिए तो इसका 'शुकनासोपदेश' नामक अंश विशेष पठनीय है। मंत्री शुकनास का यह उपेदश चन्द्रापीड के लिए ही नहीं है, अपितु समस्त विद्यार्थी वर्ग अथवा युवावर्ग के लिए है। इसमें गुरुमाहात्म्य का अतीव उत्कृष्ट वर्णन है। 'शुकनासोपदेश' सञ्ज्ञक इस खण्ड में मन्त्री शुकनास ने युवराज चन्द्रापीड को जो उपदेश दिया है वह तरुण समाज की दुर्बलताओं को यथार्थतः उजागर करता है और दुर्बलताओं को दूर करने के लिए सचेत भी करता है। इस उपदेश में मानव की जिन दुर्बलताओं का वर्णन किया गया है, उनके विषय में युवावस्था में प्रवेश के समय स्मरण किया जाए तो कुपथ का मार्ग अवरुद्ध किया जा सकता है। इस गम्भीर उपदेश के मनन से हमारे ज्ञान का क्षेत्र विशद बनता है और इन्द्रियनिग्रह भी होता है। यह उपदेश हमें सन्मार्ग की ओर प्रवृत्त करता है और कुमार्ग से विमुख करता है। अतः इस उपदेश का विस्तृत वर्णन करना यहाँ प्रसङ्गोचित है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16