Book Title: Sangit ka Manav Jivan par Manovaigyanik Prabhav
Author(s): Madan Varma
Publisher: Z_Lekhendrashekharvijayji_Abhinandan_Granth_012037.pdf

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Page 4
________________ है। जन कोई संगीतकार अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा होता है तब कोई श्रोता या दर्शक यह नहीं सोचता कि वह कलाकार किस जाति या धर्म से सम्बन्धीत है। उस समय जातिगत अथवा धार्मिक भेद याद नहीं आते। उस समय तो व्यक्ति बाहर के तमाम अवरोधो से मुक्त होकर परम आनन्द में रमने लगता हैं। वह आनन्द आत्मा से उपजता है। आत्मा के धरातल पर सब समान है। संगीत आत्मा को जगाने का काम करता है। मानव को उदार मन, निर्विकार और निर्मल बनाता हैं। यही कारण हैं हमें बिसमिल्लाखां की शहनाई में उतना ही आनन्द आता है जितना पं. रविशंकर के सितार में आता है। बडे गुलाम अली हमें उतने ही प्रभावित करते हैं जितने पंडित औंकारनाथ ठाकुर, अमीरखां, अली अखबर खां, अब्दुल हमीद जाफर, परविन सुल्ताना, बेगम अख्तर, मेहदी हसन का संगीत सुनकर मन रस में उतना ही भीग जाता है जितना कुमार गंधर्व पं. जसराज जीतेन्द्र अभीषेकी, भीमसेन जोशी, शरन रानी और निर्मला देवी का संगीत सुनकर भीग जाता है। इन कलाकारों का संगीत सुनते हुए मन में कहीं लेश मात्र विकार शेष नहीं रहता। संसार का कोई भी ऐसा साधन नहीं है जो व्यक्ति को व्यक्ति से इतनी गहराई में सहजता से जोड़ दे। बाँसुरी की मनोहारी धुन सुनकर 'हीरण' दौडा आता है। "बीन' की आवाज पर सर्प झूमने लगता है। अलगुंजो की गूंज पर 'गाँये' रंभाती हुई दौडी आती है। इसके अलावा प्रयोगों द्वारा यह भी प्रमाणित हो गया है कि संगीत के द्वारे पौधे भी बड़े हो सकते है। इस प्रकार कुछ रोगों को संगीत के द्वारा दूर करने में सफलता मिली है। इसका कारण यह है कि संगीत रोगी में आशा का संचार करता है। उत्साह और जीवन के प्रति मोह पैदा करता है, जो कि किसी भी रोग के निदान में काफी सहायक है। इतिहास में संगीत के चमत्कारिक प्रभावों के कई प्रमाण मिलते हैं। कृष्ण की बांसुरी पर बृज के नरनारी, पशु-पक्षी सब मूग्ध थे। संगीत सम्राट तानसेन और बैजू बावरा के बारे में भी यही प्रचलित हैं कि वे अपने संगीत से वर्षा करा देते थे। दीयों का जलना और पत्थरों को पिघलाना उनके लिए सहज था। यह बात शायद कुछ लोगों को अतिशयोक्ति पूर्ण लगे पर पंडित औंकार नाथ ठाकुर ने जो प्रयोग किया उस पर अविश्वास नहीं किया जा सकता। उन्होंने एक बार चिड़िया घर के एक खूखार शेर को बेला (एक वाद्य) सुनाया। उधर पंडितजी बेला बजा रहे थे इधर दहाड़े मारता हुआ शेर शांत होने लगा। थोड़ी देर बाद देखा कि पंडित औंकारनाथ ठाकुर जंगल के सामने बैठे तन्मयता से बेला पर राग बजा रहे थे और उधर जंगल के अन्दर शेर चुपचाप बैठा अपने पंजे चाट रहा था और उसकी आँखो से आँसु गिर रहे थे। यह संगीत का ही प्रभाव था जिसने खूखार जानवर को भी अमिभूत कर दिया। अंत में यही कहा जा सकता है कि संगीत का मानव जीवन से बहुत गहरा सम्बन्ध संगीत को सीधे आत्मा तक पहुँचता है। संगीत सुनकर सुखी आदमी का सुख द्विगुणित हो जाता है। समस्त चिंताओं और निराशा और तनावों से मुक्ति के लिए संगीत एक मात्र उपाय है। यह ईश्वर प्राप्ति का सहज माध्यम है। व्यक्ति, व्यक्ति के बीच आत्मीयता का सेतुरुप हैं। संसार का प्रत्येक व्यक्ति और भाषाएँ जानता हो या नहीं, पर वह संगीत की भाषा जरुर जानता है। 312 शास्त्र वाणी का संक्षेप में यदि कोई सार है तो मात्र इतना है कि अनासत्क भाव से किया जाये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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