Book Title: Sangha Kartvyadi Praja Samaja Kartavya Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 179
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ०११॥ ॥८१२॥ (१६४) उद्धारय स्वं द्विजजातिसंघ, त्यागेन बोधेन सुखी यथा स्यात् । सर्वत्र विस्तारय देव शान्ति, निवारयेा विषरूपवैरम् दयां च सम्बर्षय विश्वजीवे, विस्तारय त्वं शुलसर्वसत्यम् । निवारय त्वं व्यभिचारचौर्ये, स्वं पक्षपातस्य दहाशु बीजम् । कुरु त्वमाध्याऽऽत्मिकसत्वदानं, ज्ञानेन सम्पूरय चार्यदेशम् । निवारयोपद्रवभीतिरोगा प्रदेहि जीवेशुनशक्तिसारम् दुष्कालदुःखानि विनाशय त्वं, त्वय्यास्ति विश्वास श्तो जनानाम् । शिक्षाऽनुसारं प्रचलेन्नरो यः, सारोहमाप्नोति नरस्त्ववश्यम् अनादिकालीनसमग्रसत्यं, तवोपदेशे सकलं च कृत्यम् । प्रयोदशीयुमधुशुक्लपक्षे, सुखामि ते जन्म महोत्सवेन ॥८१३॥ ॥ ८१४ ॥ For Private And Personal Use Only

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