Book Title: Samudrabandh Chitra Kayva Ek Parichay Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ 10 २. ३. ४. राजाओ व्याकरणादि भणवुं जोईए ते अंगे सारस्वत व्याकरणनो प्रथम श्लोक- प्रणम्य परमात्मानं ० अ वडे वज्रबन्ध : रत्न ४. राजाए हरिरस चाखवो जोईए ए विषे बिहारी कविनो दोहरो - मेरी भवबाधा हरो० ए वडे धनुषबन्ध : रत्न ५. राजाने गूढ समस्या आवडवी जोइए ते अंगे-दधिसुतके० ए वडे धनुषबन्ध : रत्न ६. राजा दयापूर्वक वेदवाणी सांभळवी, ए विषे दोहरो धाता बांनी चो मुखी० ए वडे पहाडबन्ध : रत्न ७ ८. राजा द्रोहीथी दूर रहे, दीवान राखे, ए नीति विषे गाथा - नासइ जूएण धणं० ए वडे पहाडबन्ध : रत्न ८ आम ८ राजनीतिनां ८ रत्न थाय. ९. भूपति मानि मर्दन० ए खंड कलीबन्ध : रत्न ९: १०. अविचल तप तेज० ए खंड कलीबन्ध : रत्न १० ; ११. श्रीमानराजगंगा० ए श्रीपुष्करणीबन्ध : रत्न ११ ; १२. पटप्रधान मानसंग० ए लहेरबन्ध : रत्न १२ ; १३. मानराज समशेर ए पुष्करणीबन्ध : रत्न १३; १४. मानराज कुंभ घट० ए छडीबन्ध रत्न १४. ५. अनुसंधान - २२ राजाए भजन पण करवुं घंटे, ते सूचवतो रामरक्षा स्तोत्रनो श्लोक - चरितं रघुनाथस्य ० अ वडे बेसरो हारबन्ध : रत्न २. राजा दुष्टने दंडे, शिष्टने रक्षे, ओ नीति विषे सुभाषित - दधिचन्दनतम्बोलं ० ओ वडे बीजो बेसरो हारबन्ध: रत्न ३. ७. • आ १४ बन्ध एक समुद्रबन्ध थकी प्रगट छे, तेमां कविनी अद्भुत रचनानिपुणता व्यक्त थाय छे.. आना पछी कवि मोतीदाम नामना छंदमां ७ गाथाओ द्वारा नृपवर्णन करे छे. ते पछी एक कवित्त छे, ते पण राजाना वर्णननुं ज छे. छेक छेल्ले तोटक छंदमां संस्कृत भाषामा अर्धसमस्यारूप काव्य वडे कविराज, दिनकर, दामोदर, त्रिपुरा, सुरपति, सोमेश्वर अने नगराजा आ बधा देवो राजानी रक्षा करो तेवी आशीष आपीने कवि काव्यनी समाप्ति करे छे. : प्रांते आपेली पुष्पिकामां कवि पोतानो परिचय आ प्रमाणे नोंधे छे तपागच्छमां विजयानन्दसूरि ( आणसूर) गच्छमां, गायकवाड राजाए आपेल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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