Book Title: Samudrabandh Chitra Kayva Ek Parichay
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कवि दीपविजयजीकृत 'समुद्रबन्ध चित्रकाव्य' - एक परिचय विजयशीलचन्द्रसूरि 'माता त्रिशला झूलावे पुत्र पारणे' ए सुप्रसिद्ध रचनाने कारणे जैन संघमा अत्यन्त लोकप्रिय बनी गयेला कविवर पंडित श्रीदीपविजयजी महाराज ओगणीसमा शतकमां थयेला विख्यात जैन साधु--कवि छे तेओ गुजरातना वडोदराना वतनी हता (जैन. गू.क. ६ / १९५). वडोदराना गायकवाड राजाओ तेमने 'कविराज' एवं तथा उदयपुरना राणाओ 'कविबहादुर' अवुं बिरुद आप्युं हतुं. आ कविराजनी अनेक रचनाओं उपलब्ध छे. केटलीक प्रकाशित पण छे, अने थोडीक हजी अप्रकाशित छे. आ लेखमां तेमनी आवी ज एक अप्रसिद्ध रचनानो परिचय आपवामां आवे छे. जोधपुरना राठोड वंशीय राजवी मानसिंह राठोडनी प्रशस्तिरूपे एक चित्रकाव्यनी रचना तेमणे करी छे. आ रचनानी कविराजे स्वहस्ते आलेखेली सचित्र प्रत (ओळियुं : वस्त्रपट: Scroll ) वडोदरानो श्री आत्मारामजी जैन लायब्रेरीमां विद्यमान छे, तेमां कविए आ रचनाने 'समुद्रबन्ध आशीर्वचन' एवा नामे ओळखावेल छे. 'गुजराती साहित्य कोश - मध्यकाल (पृ. १७५) 'मां आ रचनानो 'समुद्रबन्ध सचित्र आशीर्वाद काव्य प्रबन्ध' एवा नामे निर्देश मळे छे. आम तो आ एक अखंड ओळियुं ज छे, पण आपणी - भावकोनी सवलत खातर अहीं तेना पांच विभाग पाडी वर्णववामां आवेल छे. ते विभागोनुं वर्णन आ प्रमाणे छे : प्रथम विभागमां लांबुं गद्यपद्यात्मक लखाण छे, तेमां प्रारंभे प्रस्तावनारूपे आठ तखतनां नाम अने तेमां आठमा तखत मरुधर - जोधपुरना नरेश, अनेक विशेषणो तथा उपमाओ धरावता महाराज मानसिंहजीने पुत्रनी, राज्यनी, लाभनी, क्षेम, जय अने धननी प्राप्ति थाय तेम ज तेना शत्रुओनुं मर्दन तथा प्रतापनी वृद्धि थाय ते अर्थे 'समुद्रबन्ध आशीर्वचन' लखवानो संकल्प आलेखवामां आव्यो छे. ते पछी छप्पय छंदमां बे काव्यो आप्यां छे जेमां समुद्रबन्धनुं माहात्म्य कविए वर्णव्युं छे. कविए कह्युं छे के 'समुद्रबन्धरूपे अपाती आशीष ए सर्वश्रेष्ठ आशीर्वाद तथा वधाई गणाय; तेना प्रतापे समुद्रपर्यंत Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-२२ पृथ्वीनुं एकछत्री राज्य सांपडे. ते काव्योना अन्ते, समुद्रबन्ध काव्यना १२९६ अक्षर, ते महाबन्धमा अन्तर्गत चौद रलोनां नानां बन्धकाव्योनी गुंथणी छे तेना ३५५ अक्षर, एम कुल १६५१ अक्षरो होवानुं कवि निर्देशे छे; जेवा के धनुषबन्ध, चोकीबन्ध, कपाटबन्ध, हळबन्ध, हारबन्ध, मालाबन्ध, निसरणीबन्ध वगेरे बन्ध एटले ते ते पदार्थनी आकृतिमां रचायेल काव्यो-चित्रकाव्यो ए महाबन्धमा समाववामां आव्या होवानुं कवि सूचवे छे. आगळ वधतां कवि कहे छे के आ नाना नाना बंधो दरेक राजाने आशीषरूपे चढावाय. पण जे 'समुद्रबन्ध' नामे मोटा बन्ध छे तेनो आशीर्वाद तो कां तो चक्रवर्ती राजाने अने कां छत्रपति राजाने ज चढावी शकाय. आ (मानसिंह) राजा छत्रपति राजा होवाथी तेमने आ समुद्रबन्ध-आशीर्वाद आपुं छ. आ पछी कवि अष्टक अर्थात् आठ काव्यो के कवित्त द्वारा मानसिंह राजाने आशीर्वाद आपवानी साथे साथे तेना इष्टदेवोनां नाम-वर्णनपूर्वक तेओ पण तेनी रक्षा करे तेवू वर्णन करे छे, ते क्रमश: जोईए. १. श्री जालन्धरनाथ रक्षा-आशीर्वचन : छप्पय छंदमां कवि जालन्धरनाथ एटले के शंकर भगवाननुं स्वरूप वर्णव्यु छे अने ते राजानी रक्षा करे, संकट हरे तेवो आशीर्वाद व्यक्त कर्यो छे. आ कवितमां शंकरखें जालंधरनाथ तरीके थयेल वर्णन तेमज आ रचनाना प्रारंभे कविओ लखेल 'श्रीजालन्धरनाथो जयति' एवो प्रारंभ जोतां आ राजवीना इष्टदेव शंकर होवा जोईए अने तेनो संबंध नाथसंप्रदाय साथे होवो जोईए एम अनुमान थाय छे. कवितनी अंतिम पंक्तिमा 'लाडूनाथ' एवं नाम आवे छे, 'ते को तो शंकरपुत्र गणपतिनुं सूचक होय अने कां तो ते नामे कोई योगीनो संकेत पण होय. २. बीजो छप्पय पण उपरनी माफक ज जालंधरनाथ शिवजीनुं वर्णन आपे छे. त्रीजा छप्पय छंदमां 'महामन्दिर श्रीकृष्णदेव-रक्षा' रूप आशीर्वचन छे. आमां मोरमुगटधारी श्रीकृष्णनुं स्वरूप सरस वर्णवायुं छे. जैन कवि शिवजी अने कृष्णन आतुं सरस वर्णन करे ते वात पण उदार मनोवलण सहित अनेक दृष्टिए महत्त्वपूर्ण गणाय तेवी लागे छे. ४. . चोथा छप्पयमा 'नवग्रहरक्षा-आशीर्वचन' छे. तेमां नवे ग्रहो राजानु Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ January-2003 9 मंगल करो तेवी भावना व्यक्त थई छे. ५. पांचमा छप्पयमा सकलदेव रक्षा-आशीष आपेल छे. तेमां शंभुसुतथी लईने जगदंबा सुधीना अनेक देव-देवीओनी रक्षा वर्णवाई छे. ६. छठ्ठा छप्पयमां कविराज दीपविजयना सुवचननी रक्षारूपी आशीर्वाद व्यक्त करवामां आव्यो छे. ___ आमां समुद्रबन्धमाहात्म्यनां बे कवित्त अने रक्षानां छ कवित्त एम मळीने कुल ८ कवित्त थयां छे, अने तेने कविए 'आशीर्वचनअष्टक' तरीके ओळखावेल छे. त्यारबाद ऋण कवित्त, संभवतः मनहर छंदमा छे ते, द्वारा कविए मानसिंहनी यशकीर्तिनुं वर्णन कर्यु छे. तेनी साथे ज विभाग १ पूरो थाय छे. विभाग २मां राजाना त्रण सेवकोनां राजस्थानी - जोधपरी शैलीनां सुन्दर चित्रो छे, अने तेनी नीचे एक नाना चोकठामां मानसिंह राजाना खड्गनुं वर्णन करतुं कवित्त छे. तेनी नीचे, पांचमा विभागमां ज एक खूणामां म्यान युक्त तलवारनुं मजानुं चित्र जोवा मळे छे. विभाग ३मां पण राजाना त्रण छत्रधर वगैरे सेवकोनां त्रण. अलग अलग चित्रो छे, अने तेनी नीचेना चोकठामां राजाने मेघनी उपमा अर्पतुं कवित्त छे. __ विभाग ४मां समुद्रबन्धना चित्रकाव्यमा ३६ . पंक्तिओमां डाबेथी जमणे वांचीए तो एक पंक्तिमा एक एम कुल ३६ दोहरा (मोटा कोठामां) वंचाय छे. आ दोहराओ स्वयं एक रचना बनी छे, तेमां राजानी कीर्तिनुं वर्णन कविए कर्य छे. - अने पांचमा विभागनुं स्वरूप दर्शावतां कवि पोते ज लखे छे के जेम श्रीकृष्णे समुद्रमन्थन करीने १४ रत्नो काढ्यां ते रीते में पण आ समुद्रबन्ध-चित्रकाव्यना मन्थन थकी १४ नानां बन्धकाव्योरूपी रत्नो नीपजाव्या छे. ते १४ रनो आ प्रमाणे छे : ८ राजनीतिनां रत्न, ४ आशीर्वचनरूपी रत्न, १ बिरुद-उपमार्नु रत्न, १ कविनी प्रार्थनानुं रत्न – ए रीते १४ रत्नो छे. आ बधां रत्नोनी विगते समजूती आपतां कवि कथे छे : १. राजनीति १ : स्त्रीनो विश्वास न करवो; ते विषे-यां चिन्तयामि सततं० ओ नीतिशतकना श्लोक द्वारा एकसरो हारबंध : रत्न १. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 २. ३. ४. राजाओ व्याकरणादि भणवुं जोईए ते अंगे सारस्वत व्याकरणनो प्रथम श्लोक- प्रणम्य परमात्मानं ० अ वडे वज्रबन्ध : रत्न ४. राजाए हरिरस चाखवो जोईए ए विषे बिहारी कविनो दोहरो - मेरी भवबाधा हरो० ए वडे धनुषबन्ध : रत्न ५. राजाने गूढ समस्या आवडवी जोइए ते अंगे-दधिसुतके० ए वडे धनुषबन्ध : रत्न ६. राजा दयापूर्वक वेदवाणी सांभळवी, ए विषे दोहरो धाता बांनी चो मुखी० ए वडे पहाडबन्ध : रत्न ७ ८. राजा द्रोहीथी दूर रहे, दीवान राखे, ए नीति विषे गाथा - नासइ जूएण धणं० ए वडे पहाडबन्ध : रत्न ८ आम ८ राजनीतिनां ८ रत्न थाय. ९. भूपति मानि मर्दन० ए खंड कलीबन्ध : रत्न ९: १०. अविचल तप तेज० ए खंड कलीबन्ध : रत्न १० ; ११. श्रीमानराजगंगा० ए श्रीपुष्करणीबन्ध : रत्न ११ ; १२. पटप्रधान मानसंग० ए लहेरबन्ध : रत्न १२ ; १३. मानराज समशेर ए पुष्करणीबन्ध : रत्न १३; १४. मानराज कुंभ घट० ए छडीबन्ध रत्न १४. ५. अनुसंधान - २२ राजाए भजन पण करवुं घंटे, ते सूचवतो रामरक्षा स्तोत्रनो श्लोक - चरितं रघुनाथस्य ० अ वडे बेसरो हारबन्ध : रत्न २. राजा दुष्टने दंडे, शिष्टने रक्षे, ओ नीति विषे सुभाषित - दधिचन्दनतम्बोलं ० ओ वडे बीजो बेसरो हारबन्ध: रत्न ३. ७. • आ १४ बन्ध एक समुद्रबन्ध थकी प्रगट छे, तेमां कविनी अद्भुत रचनानिपुणता व्यक्त थाय छे.. आना पछी कवि मोतीदाम नामना छंदमां ७ गाथाओ द्वारा नृपवर्णन करे छे. ते पछी एक कवित्त छे, ते पण राजाना वर्णननुं ज छे. छेक छेल्ले तोटक छंदमां संस्कृत भाषामा अर्धसमस्यारूप काव्य वडे कविराज, दिनकर, दामोदर, त्रिपुरा, सुरपति, सोमेश्वर अने नगराजा आ बधा देवो राजानी रक्षा करो तेवी आशीष आपीने कवि काव्यनी समाप्ति करे छे. : प्रांते आपेली पुष्पिकामां कवि पोतानो परिचय आ प्रमाणे नोंधे छे तपागच्छमां विजयानन्दसूरि ( आणसूर) गच्छमां, गायकवाड राजाए आपेल Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 January-2003 'कविराज' बिरुद धरावनार जती पं. दीपविजय कविराजे राठोड राजा मानसिंहनी कीर्तिना गानस्वरूप समुद्रबन्ध-आशीर्वचन रचेल छे. सं. १८७७ना विजया-- दशमीदिने कविराज दीपविजये स्वहस्ते लखेल छे. समग्रपणे आ रचनानुं अवलोकन करतां कवितुं काव्यकौशल्य, चित्रकाव्य जेवा कठिन काव्यप्रकारनी रचना तथा एकमां अनेक चित्रकाव्यो समाववानी निपुणता, व्रजभाषा तथा छंदो परतुं प्रभुत्व तथा चित्रकलाचित्रालेखननी क्षमता - एम अनेक बाबतो विष प्रकाश पड़े छे. एक संभावना खरी के चित्रो कविए कोई निपुण चित्रकार पासे पण दोराव्यां होय. . परंतु कवि स्वयं चित्रकलाकुशल नहि ज होय तेवू जकारपूर्वक कही शकाय तेम तो नथी ज. केमके कविए जाते चित्रांकित करेल वसुंधरा देवी, रंगीन चित्र मळी आव्युं छे (जुओ अनुसन्धान -पत्रिका, क्र.२०, जुलाई २००२). प्रसंगोपात्त एक मुद्दो कहेवो ठीक लागे छे. जैन मुनि थईने कवि . राजानां, शास्त्रोनां तथा ते अनुषंगे तेना देवादिकनां गुणगान गायं एमां औचित्य खरं ? कदाच आ सवाल खुद कविना चित्तमां पण उग्यो होवो जोईए. तेनो संकेत कविए रचेल एक ऐतिहासिक रचना 'सोहमकुलपट्टावली'नी प्रशस्तिमां स्वयं कविए ज आ शब्दोमां आप्यो छ : "कवेसर बिरद धरावी जगमें, बह नृप सस्त्र वखांण्या भुज बल फोज संग्राम वखांण्या, आतमदोष न जाण्या रे" ___ (जैन गू.क. ६/१८८) आ वातने बाजुओ राखीने विचारीओ तो, कवि, कविकर्म मध्यकाळना उत्तम कविओनी हरोळमां कविने निःशंक स्थान अपावे तेQ छे, तेमां बेमत नहि. कविवरना स्वहस्ते आलेखायेल आ वस्त्रपट-चित्रकाव्यनी छबी आ अंकमां अन्यत्र आफ्वामां आवी छे. आ काव्यनी रचना व्रजभाषामां होवाथी ते विषेनी अज्ञताने कारणे अर्थबोध थवो कठिन पडतो होई पदच्छेद, शुद्धता वगेरे अंगे कांई ने कांई गरबड रही जवार्नु स्वाभाविक छे. जाणकारो ते विषे नोंध मोकलशे तो हवे पछीना अंकमां प्रकाशित करवानुं गमशे. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाभासीज गावारिश सपीमतवा समामादिर जा . नापाराशाजात का साका नीत TOTROORIEOभी न ना