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अनुसंधान-२२
पृथ्वीनुं एकछत्री राज्य सांपडे. ते काव्योना अन्ते, समुद्रबन्ध काव्यना १२९६ अक्षर, ते महाबन्धमा अन्तर्गत चौद रलोनां नानां बन्धकाव्योनी गुंथणी छे तेना ३५५ अक्षर, एम कुल १६५१ अक्षरो होवानुं कवि निर्देशे छे; जेवा के धनुषबन्ध, चोकीबन्ध, कपाटबन्ध, हळबन्ध, हारबन्ध, मालाबन्ध, निसरणीबन्ध वगेरे बन्ध एटले ते ते पदार्थनी आकृतिमां रचायेल काव्यो-चित्रकाव्यो ए महाबन्धमा समाववामां आव्या होवानुं कवि सूचवे छे.
आगळ वधतां कवि कहे छे के आ नाना नाना बंधो दरेक राजाने आशीषरूपे चढावाय. पण जे 'समुद्रबन्ध' नामे मोटा बन्ध छे तेनो आशीर्वाद तो कां तो चक्रवर्ती राजाने अने कां छत्रपति राजाने ज चढावी शकाय. आ (मानसिंह) राजा छत्रपति राजा होवाथी तेमने आ समुद्रबन्ध-आशीर्वाद आपुं छ. आ पछी कवि अष्टक अर्थात् आठ काव्यो के कवित्त द्वारा मानसिंह राजाने आशीर्वाद आपवानी साथे साथे तेना इष्टदेवोनां नाम-वर्णनपूर्वक तेओ पण तेनी रक्षा करे तेवू वर्णन करे छे, ते क्रमश: जोईए. १. श्री जालन्धरनाथ रक्षा-आशीर्वचन : छप्पय छंदमां कवि जालन्धरनाथ
एटले के शंकर भगवाननुं स्वरूप वर्णव्यु छे अने ते राजानी रक्षा करे, संकट हरे तेवो आशीर्वाद व्यक्त कर्यो छे. आ कवितमां शंकरखें जालंधरनाथ तरीके थयेल वर्णन तेमज आ रचनाना प्रारंभे कविओ लखेल 'श्रीजालन्धरनाथो जयति' एवो प्रारंभ जोतां आ राजवीना इष्टदेव शंकर होवा जोईए अने तेनो संबंध नाथसंप्रदाय साथे होवो जोईए एम अनुमान थाय छे. कवितनी अंतिम पंक्तिमा 'लाडूनाथ' एवं नाम आवे छे, 'ते को तो शंकरपुत्र गणपतिनुं सूचक होय अने कां तो ते नामे
कोई योगीनो संकेत पण होय. २. बीजो छप्पय पण उपरनी माफक ज जालंधरनाथ शिवजीनुं वर्णन
आपे छे. त्रीजा छप्पय छंदमां 'महामन्दिर श्रीकृष्णदेव-रक्षा' रूप आशीर्वचन छे. आमां मोरमुगटधारी श्रीकृष्णनुं स्वरूप सरस वर्णवायुं छे. जैन कवि शिवजी अने कृष्णन आतुं सरस वर्णन करे ते वात पण उदार मनोवलण
सहित अनेक दृष्टिए महत्त्वपूर्ण गणाय तेवी लागे छे. ४. . चोथा छप्पयमा 'नवग्रहरक्षा-आशीर्वचन' छे. तेमां नवे ग्रहो राजानु
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