Book Title: Sammetshikhar Ras ka Sar
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Arya_Kalyan_Gautam_Smruti_Granth_012034.pdf

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Page 2
________________ m a iIARRITARAHIRAImmunmunamaAARAamaIRITY महिम, समाणो, सीहनवे, सोवनपंथ, सोरठ, बाबरपुर, सिकन्दरा, नारनौल, अलवर, कोट्टरवाड़ा, दिल्ली, तज्जारा, खोहरी, फत्तियाबाद, उज्जैन, मांडवगढ़, रामपुर, रतलाम, बुरहानपुर, बालापुर, जालणापुर, ग्वाल र, अजमेर, चाटसू, आम्बेर, सांगानेर, सोजत, पाली, रवैरवा, सादड़ी, कुभलमेर, डीडवाणा, बीकानेर, जयतारण, पीपाड़, मालपुर, सिद्धपुर, सिरोही, बाहडमेर, ब्रह्मावाद, व्याणइ, सिकन्दराबाद, पिरोजपुर, फतैपुर, पादरा, पीरोजाबाद इत्यादि। सब जगह निमंत्रण भेजे गए, महाजनों को घर-घर में यति महात्माओं को शालाओं में और दहेरे के दिगम्बर यतियों को भी प्रणाम करके संघ में सम्मिलित होने की विनति की। मुहत के दिन वाजिंत्र बजते हुए याचकादि द्वारा जय जयकार के साथ गजारूढ़ होकर प्रयारण किया। नौका में बैठकर यमुना पार डेरा दिया। यहां स्थान-स्थान का संघ पाकर मिलने लगा, १५ दिन का मुकाम हुआ, श्वे० साधु साध्वी महात्मादि ७५, यति व पंडित (दि.) ४६, सब १२१ दर्शनी, ३०० भोजक, चारण, भाट, गान्धर्व, ब्राह्मण, ब्राह्मणी, जोगी, संन्यासी, दरवेश ग्रादि अगणित थे। २१ धर्मार्थ गाडे में याचक लोग मनोवाञ्छित पाते थे, किसी को कोई चीज की कमी नहीं थी। १५ दिन ठहर कर प्रभु पार्श्वनाथ की पूजा कर संघ चला। जहां-जहां प्रोसवाल और श्रीमालादि के घर थे वहां थाल १, खांड सेर २ व श्रीफल से लाहण की। संघ की रक्षा के हेतु ५०० सुभट साथ थे। प्रथम प्रयाण भारणासराय में हुआ। ३ मुकाम किए, वहां से महम्मदपुर होते हुए पीरोजपुर पाए, ६ मुकाम किये। मुनिसुव्रत भगवान की पूजा करके लाहणादि करके चन्दनवाड़ि गये। वहां स्फटिकमय चन्द्रप्रभु की प्रतिमा के दर्शन किये । वहां से पीरोजाबाद आये, फिर खरी प्रयाण किया, नौका में बैठकर यमुना नदी उतर के सौरीपुर पहुंचे ! नेमिनाथ प्रभु के जन्म कल्याणक तीर्थ का वंदनपूजन कर फिर से खरी पाये। यहां ५२ जिनालय को वंदन किया, संघपति ने प्रथम कड़ाही (जीमनवार) की। सरस के दिगम्बर देहरे का वंदन कर अहीर सराय में डेरा दिया। वहां से इटावा, बाबरपुर, फुलकंइताल, भोगिनीपुर, सांखिसराहि, कोरट्टइ, बिदली सराय में डेरा करते हुए १ दिन फतेहपुर ठहरे। हाथियागाम, कडइ, सहिजादपुर आए, श्रीसंघ हर्षित हुआ। सहिजादपुर से महुआ पाए, वहां सती मृगावती ने भगवान महावीर देव से दीक्षा ली थी। वत्सदेश की कौशाम्बी नगरी में पद्मप्रभु के तीन कल्याणक हुए हैं, वीरप्रभु ने छम्मासी का पारणा चन्दनबाला के हाथ से यहीं किया था। संघपति ने संघ सहित प्रभु की चरणपादुकानों का वंदन किया, अनाथी मुनि भी यहां के थे। एक कोस दूर धन्ना का ताल है, वहां से वापिस सहिजादपुर प्राये, एक मुकाम करके दूसरी कड़ाही की। वहां से फतेहपुर होकर प्रयाग आये, यहां अनिकापुत्र को गंगा उतरते केवलज्ञान हुआ था। कहते हैं कि ऋषभ प्रभु का केवलज्ञान का स्थान पुरमिताल भी यही है। अक्षयबड़ के नीचे प्रभु के चरणों की पूजा की, यहां दिगम्बरों के ३ मन्दिर हैं जहां पार्श्वनाथादि प्रभु के दर्शन किए। गंगा के तट पर असीसइ ऊँचे स्थान पर डेरा दिया, वहां से खंडिया सराय, जगदीश सराय, कनक सराय, होते हुए बनारस पहुंचे। बनारस में पार्श्व, सुपार्श्व तीर्थंकरों के कल्याणक हुए हैं। विश्वनाथ के मन्दिर के पास ५ प्रतिमाएं ऋषभदेव, नेमिनाथ व पार्श्वप्रभु की हैं। अन्नपूर्णा के पास पार्श्वप्रभु की प्रतिमा है, खमरणावसही में बहुत सी प्रतिमाएं हैं जहां संघ ने पूजनादि किया। पार्श्वप्रभु की रक्त वर्ण प्रतिमा ऋषभ, पार्श्व, चन्दप्रभ व वर्धमान प्रभु की चौमुख प्रतिमानों का कुसुममालादि से अर्चन कर श्री सुपार्श्वप्रभु की कल्याणक भूमि भद्दिलपुर (? भदैनी घाट) में प्रभु की पूजा की। नौका से गंगा पार होकर गंगा तट पर डेरा दिया। संघपति ने नगर में पडह बजाया ADS પ શ્રી આર્ય કયાણગૌતમ ઋતિગ્રંથ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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