Book Title: Sambodhi 2011 Vol 34
Author(s): Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 139
________________ Vol.XXXIV, 2011 ग्रंथ समालोचना 129 ग्रंथ में दूसरी कृति का नाम कुमारपालदेव प्रबंध है । हस्तलिखित ग्रंथों के आधार पर अनुमान किया जाता है कि इस कृति की रचना वि.सं. १५०० के पूर्व की गई होगी। इसकी भाषा बहुत ही सादी, अशुद्ध, कहीं-कहीं अपभ्रंश एवं बोलचाल की संस्कृत भाषा है जो लोकगम्य सहज देश्यभाषा का अनुकरण लगती है। इसमें कुमारपाल के जीवन की छोटी-छोटी घटनायें भी संग्रहित हैं जो अन्य रचनाओं में नहीं मिलती। साथ ही हेमचंद्रचार्य के प्रबंध में वर्णित कुछेक घटनाओं का वर्णन है जो अन्यत्र उद्धृत नहीं हुई है। इसमें विशिष्ट ऐतिहासिक तथ्यों का वर्णन भी हुआ है। ___सोमप्रभाचार्य कृत कुमारपालप्रतिबोध - उद्धृत ऐतिह्यसारात्मक संक्षेप : इस रचना की एकमात्र प्रति खंभात से ताडपत्र के ऊपर वि.स. १४५८ में लिखी हुई मिलती है। मूल ग्रंथ की रचना सोमप्रभाचार्य ने वि.स. १२४१ में की थी। इसका मूल नाम जिनधर्म प्रतिबोध है किन्तु पुष्पिका में इसे कुमारपालप्रतिबोध नाम से इंगित किया गया है जो अधिक उचित प्रतीत होता है । प्रस्तुत संग्रह में हेमचंद्राचार्य विरचित त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरितान्तर्गत महावीर चरितस्थ कुमारपालचरित्र वर्णन १२वे सर्ग से उद्धृत किया गया है । तत्पश्चात् उन्हीं द्वारा विरचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र से प्रशस्ति प्रकाशित की गई है। कुमारपालचरित्र नामक इस संग्रह में दो ऐसे महान पुरुषों का वर्णन हुआ है जिनकी समानता करने वाला भारत में अन्य कोई नहीं हुआ । राजर्षि कुमारपाल के आदर्श जीवन का एक पल भी ऐसा नहीं था जो किसी के लिए अनुपयोगी है। अतएव ऐसे महापुरुष के जीवन चरित्र का चिन्तन, मनन एवं अनुपालन अवश्य करना चाहिए । प्रस्तुत प्रकाशन अपने विषय वस्तु, प्रस्तुति एवं ऐतिहासिक - धार्मिक महत्त्व के कारण विद्वानों एवं संशोधकों हेतु सहयोगी बना है। संपादक एवं प्रकाशक ने गुजरात से प्रकाशित होने वाले शास्त्रीय ग्रंथों की मुद्रण परम्परा एवं स्तर को संजोये रखा है एतदर्थ बधाई के पात्र है। कुमारपालचरित्रसङ्ग्रहः, सङ्ग्राहक एवं सम्पादक : आचार्य जिनविजय मुनिः नवीनसंस्करणसम्पादकः, डॉ. जितेन्द्र बी. शाह, सहयोगी : साध्वी चन्दनबालाश्री, पृष्ठ : ३४६, मूल्य : रु. ४००/-, ई.स. २००८, प्रकाशक : श्रुतरत्नाकर, अहमदाबाद. સંખ્યાત્મક શબ્દ કોશ પ્રસ્તુત ગ્રંથના સંખ્યાના ક્રમ અનુસાર જે જે શબ્દો સંગ્રાહકને મળ્યા, તેને તે મુજબ ક્રમમાં મૂકીને ઉદ્ધત કરેલ છે. આ શબ્દોને કોઈ ચોક્કસ સીમામાં ન બાંધતાં જૈન, બૌદ્ધ અને વૈદિક પરંપરા ઉપરાંત લૌકિક રૂઢિમાંથી જ્યાંથી પણ આવા શબ્દો સાંપડ્યા તે સર્વેનો અત્રે સમાવેશ કરવામાં આવેલ છે અને સાથે તેનો સંદર્ભ મળેલ હોય તો તેની પણ નોંધ છે. વૈવિધ્યસભર સંખ્યાત્મક શબ્દકોશમાં પૂ. પ્રવર્તક મુનિશ્રી મૃગેન્દ્ર મુનિજીએ અનેક જૈનશાસ્ત્રગ્રંથો, આગમગ્રંથો અને અન્ય શાસ્ત્રગ્રંથોમાંથી ૧ થી ૧૦૦૦ સુધીના અંકોના ક્રમે પદાર્થોનો સંગ્રહ કરીને એક નવી ભાતનો કોશ તૈયાર કરેલ છે. છેલ્લે ૧૮,૦૦૦ શીલાંગરથ, ચોર્યાશી લાખ વયોનિ, શૂન્ય, બિન્દુચક્ર, નાદ, બિંદુ, કલા વગેરેનો પણ નિર્દેશ કરેલ છે. હસ્તપ્રતોના ગહન Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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