Book Title: Samayik Sadhna aur Acharya Hastimalji
Author(s): Fulchand Mehta
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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Page 7
________________ * प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. * 205 मिथ्या दुराग्रहों से मुक्त होकर ज्ञानी की आज्ञा का पाराधन करना, स्वाध्याय, भक्ति, आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रायश्चित, वैराग्ययुक्त होकर आत्म ज्ञान-ध्यान की श्रेणी में आरूढ़ होना / सत्संग को परम हितकारी मान कर परम भक्तिपूर्वक उपासना करना, महाव्रतादि का यथावत् पालन करना, अष्ट प्रवचन माता की आराधना पूर्वक रत्नत्रय धर्म की शुद्ध आराधना हो, ऐसी निस्पृह निष्काम वृत्ति- प्रवृत्ति करना जिससे पापों से बचा जा सके, धर्मध्यान में लीन हुप्रा जा सके। बहिरंग साधना भी मात्र अंतरंग रत्नत्रय धर्म की साधना की अनुसारी हो तभी दोनों मिलकर मोक्ष मार्ग साधने की प्रक्रिया हो सकती है। हम आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. के जीवन से यही प्रेरणा लें, अन्तरमुखी बनें / वीतरागता, सर्वज्ञता ही हमारा लक्ष्य है, इसे न भूलें / यह जीवन केवल खाने-पीने, भोगने-कमाने के लिए नहीं मिला है बल्कि इनसे छूटने के लिए और आत्मा की अनन्त वैभव शक्तियों को जगाने के लिए मिला है / ऐसी विरक्त आत्माओं से ही, उनके उपदेशों से, उनके बताये मार्ग से ही सच्चा सुख, शांति व आनन्द प्राप्त किया जा सकता है। हमारे जीवन का मुख्य हितकारी भाग सामायिक, स्वाध्यायमय जीवन साधना रूप हो, तभी जीवन के अन्य सम्बन्धों में वैराग्य, विचार, विवेक, विरक्ति और वीतरागता की प्रसादी बढ़ा सकेंगे, निस्पृह रहना सीख सकेंगे / अल्प-जीवन में महापुरुषार्थ से अनन्त भवों के दुःखों से छूटना है / प्राचार्य श्री जीवन के हर प्रसंग में सामायिक-स्वाध्याय की प्रेरणा भव्य जीवों को करते रहते थे / उन्हीं की प्रेरणा से सामायिक संघ, स्वाध्याय संघ, सम्वग्ज्ञान प्रचारक मण्डल की विभिन्न प्रवृत्तियां चल रही हैं। उनकी आत्मा अंतरमुखी होकर परमातम स्वभाव को प्राप्त करे, यही मंगल कामना है। . -382, अशोक नगर, गौशाला के सामने, उदयपुर * आत्म-स्थिरता ही सामायिक की पूर्णता है / * जैसे घर से निकल कर धर्म-स्थान में आते हैं और कपड़े बदल कर ___ सामायिक साधना में बैठते हैं, उसी तरह कपड़ों के साथ-साथ आदत भी बदलनी चाहिए और बाहरी वातावरण तथा इधर-उधर की बातों को भुला कर बैठना चाहिए। --प्राचार्य श्री हस्ती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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