Book Title: Samanyanirukti Gudharthatattvaloka
Author(s): Dharmadattasuri
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 186
________________ اف शुद्धिपत्रम् । ام . प. م . . م शुखम् परिक तनिरूपितनिरूपक प्रामाण्य रूपेणो रितिचे م . م . م م १५ م . . م . م م . س . २५ نة २२ م س س अशुद्ध परिक तनिकरक प्राणाम रूपणो रिचे तया तत्कस्पेति दत्वनि नस्व काली भावत वादिस्वाभावत्व प्रातिश्वीक प्रातिस्वीक साकामावा स्वविषयि तज्ज्ञान न्यतरमेव साध्यतत्ता ततृय याव नचमा भ्रमे त परस्पर वि नासम्भव स्यामावाद तवैवं जलवद्धदो पपदन विशिक्षा س . س . २० . तया एतत्कल्पेऽपि दनि मत्वं कालीन भावस्यत वहिवाभावाभावस्व प्रातिस्विक प्रातिस्विक ताकाअमावा स्वावच्छिमाविषयि तपकि म्यतरवत्वमेव साध्यवत्ता तत्रितय यत्वाव नचासा प्रमे तत्र त परस्पर स्वावीच्छवि नासम्मवसम्भब स्याप्यभावात् तवैव जलवघटे दो पपादन विशिष्टाभावा و و ૨૪ २२ २६

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