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शुद्धिपत्रम् ।
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शुखम् परिक तनिरूपितनिरूपक प्रामाण्य रूपेणो रितिचे
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अशुद्ध परिक तनिकरक प्राणाम रूपणो रिचे तया तत्कस्पेति दत्वनि नस्व काली भावत वादिस्वाभावत्व प्रातिश्वीक प्रातिस्वीक साकामावा स्वविषयि तज्ज्ञान न्यतरमेव साध्यतत्ता ततृय याव नचमा भ्रमे त परस्पर वि नासम्भव स्यामावाद तवैवं जलवद्धदो पपदन विशिक्षा
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तया एतत्कल्पेऽपि दनि मत्वं कालीन भावस्यत वहिवाभावाभावस्व प्रातिस्विक प्रातिस्विक ताकाअमावा स्वावच्छिमाविषयि तपकि म्यतरवत्वमेव साध्यवत्ता तत्रितय यत्वाव नचासा प्रमे तत्र त परस्पर स्वावीच्छवि नासम्मवसम्भब स्याप्यभावात् तवैव जलवघटे दो पपादन विशिष्टाभावा
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