Book Title: Samaj ko Badlo Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf View full book textPage 2
________________ समाजको बदलो १७३ 'बदल जाओ,' तब उसे समाजको यह तो बताना ही होगा कि तुम कैसे हो, और कैसा होना चाहिए । इस समय तुम्हारे अमुक अमुक संस्कार हैं, अमुक अमुक व्यवहार है, उन्हें छोड़कर अमुक अमुक संस्कार और अमुक अमुक रीतियाँ धारण करो। यहाँ देखना यह है कि समझानेवाला व्यक्ति जो कुछ कहना चाहता है, उसमें उसकी कितनी लगन है, उसके बारेमें कितना जानता है, उसे उस वस्तुका कितना रंग लगा है, प्रतिकूल संयोगोंमें भी वह उस सम्बन्धमें कहाँ तक टिका रहा है और उसकी समझ कितनी गहरी है । इन बातोंकी छाप समाजपर पहले पड़ती है। सारे नहीं तो थोड़ेसे भी लोग जब समझते हैं कि कहनेवाला व्यक्ति सच्ची ही बात कहता है और उसका परिणाम उसपर दीखता भी है, तब उनकी वृत्ति बदलती है और उनके मनमें सुधारकके प्रति अनादरकी जगह आदर प्रकट होता है। भले ही वे लोग सुधारकके कहे अनुसार चल न सकें, तो भी उसके कथनके प्रति आदर तो रखने ही लगते हैं। औरोंसे कहने के पहले स्वयं बदल जानेमें एक लाभ यह भी है कि दूसरोंको सुधारने यानी समाजको बदल डालनेके तरीकेकी अनेक चाबियाँ मिल जाती हैं। उसे अपने आपको बदलनेमें जो कठिनाइयाँ महसूस होती हैं, उनका निवारण करनेमें जो ऊहापोह होता है, और जो मार्ग ढूँढ़े जाते हैं, उनसे वह औरोंकी कठिनाइयाँ भी सहज ही समझ लेता है । उनके निवारणके नए नए मार्ग भी उसे यथाप्रसंग सूझने लगते हैं। इसलिए समाजको बदलनेकी बात कहनेवाले सुधारकको पहले स्वयं दृष्टांत बनना चाहिए कि जीवन बदलना जो कुछ है, वह यह है । कहनेकी अपेक्षा देखनेका असर कुछ और होता है और गहरा भी होता है । इस वस्तुको हम सभीने गाँधीजीके जीवनमें देखा है। न देखा होता तो शायद बुद्ध और महावीरके जीवनपरिवर्तनके मार्गके विषयमें भी सन्देह बना रहता। इस जगह मैं दो-तीन ऐसे व्यक्तियोंका परिचय दूंगा जो समाजको बदल डालनेका बीड़ा लेकर ही चले हैं । समाजको कैसे बदला जाय इसकी प्रतीति वे अपने उदाहरणसे ही करा रहे हैं। गुजरातके मूक कार्यकर्ता रविशंकर महाराजको-जो शुरूसे ही गाँधीजीके साथी और सेवक रहे हैं,-चोरी और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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