Book Title: Samaj Seva me Nari Ki Bhumika
Author(s): Malti Sharma
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ समाज सेवा में नारी की भूमिका वैसे तो समाज में सदैव से ही सेवा के अनेक रूप प्रकार रहे हैं। कुछ सेवाएँ मूल्ययुक्त होते हुए भी मूल्यां कन से परे हैं, कुछ कही तो अमूल्य जाती हैं पर हैं दो कौड़ी की । कायिक सेवा है तो कहीं केवल कागजी और दिमागी सेवा ही है सेवाएं तथा स्वैच्छिक सेवाऐं। कहीं मूक सेवा है, कहीं शाब्दिक, आर्थिक और पर इनमें दो रूप तो प्रमुख और सर्वमान्य हैं—पेशेवर १०३ मध्ययुगीन भारतीय समाज में नारी की क्रीतदासी और वेतन-पोषण - भोगी — दोनों रूपों में सेवा भूमिका रही है। दाक्षियों की बाकायदा खरीद-फरोख्त होती थी, दहेज में लिया जाता था, वे स्वामी की सम्पत्ति होती थीं। इस युग के साहित्य और इतिहास में राज-राजवाड़ों में सम्पन्न घरानों में चेरी, दासी, लौंडी, बाँदी, गोली, द्वती, सेविका और धाय आदि सेवारत नारियों के प्रचुर उल्लेख हैं । सेविकाओं के ये अनेक पर्याय एक ओर जहाँ राजकीय तन्त्रमन्त्र षडयन्त्र में नारी के मनमाने उपयोग, क्रूर शोषण, उत्पीड़न और दासी से रानी के मान-सम्मान की दास्तान हैं। तो दूसरी ओर पत्रा धाय की चरमोत्कर्षमयी कहानी भी दक्षिणी प्रान्तों में अभी भी कुछ घरों में बंसानुगत घरेलू सेवाओं की परम्परा जीवित है । बौद्धयुगीन कलारूपों, भित्ति एवं गुफा चित्रों से भी जात होता है कि वे सेविकाएँ अनेक कला निपुण और नियत सेवा की विशेषज्ञा होती थीं। तदनुसार ही उनके नाम भी ताम्बूलवाहिनी, चंवरधारिणी, वीणा वादिनी, सैरन्ध्री इत्यादि हुआ करते थे। पांडवों के अज्ञातवास - काल में स्वयं द्रौपदी ने विराटराज के यहां सैरन्ध्री का कार्य किया था । Jain Education International जीवन का कोई मूल्य नहीं । दासियों सेविकाओं का एक वर्ग विविध धर्मों से सम्बद्ध भी था जिसका मेरु सुमेरु है दक्षिण की देवदासी प्रथा । महाराष्ट्र में ये दासियाँ देवता की मुरली पुकारी जाती हैं। मन्दिरों की सेवा में ही इनका जीवन होम होता है। इसी युग में बौद्ध भिक्षुणियों और जैन साध्वियों की त्याग तपमयी और शैव-शाक्त मत की भैरवियों की जागरणमयी भूमिकाएँ भी हैं जो अविस्मरणीय हैं। वस्तुतः यह तो एक शोध का पृथन् विषय होगा निष्कर्षतः इतना ही कहा जा सकता है कि मध्ययुग में नारी और उसकी सेवाएँ समाज में अर्जित उपलब्ध सम्पत्ति थीं, यह दूसरी बात है कि इस युग में और अब तक भी मध्यवर्ग की गृहणी की दासी कहलाने में गौरवान्वित भी सांस्कृतिक पुनर्जागरण, स्वातन्त्र्य आन्दोलन और पश्चिमी सम्पर्क के आधुनिक युग में नारी विविध सामाजिक क्षेत्र में अधिकाधिक बाहर आई । वर्जित क्षेत्रों में प्रवेश हो उसके सेवा क्षितिज, फलक का अभूतपूर्व विस्तार हुआ। महर्षि दयानन्द, विवेकानन्द और महात्मा गाँधी के सक्रिय प्रयत्नों ने उसे वस्तु से व्यक्ति में बदल मानवीय गौरव दिया । एक बार फिर से नारी की वही प्राचीन निस्पृह, निःस्वार्थ, करुणा, ममतामय मगर तेजस्वी सेवामूर्ति, राजनैतिकसामाजिक जीवन के हर केन्द्र, गली, सड़क, चौराहों पर आधमों, निराश्रय गृहों में, विराटरूप में साकार हो उठीं, जीवन का कोई क्षेत्र उससे अछूता न बचा। वास्तव में इस काल खण्ड की नारी सेवाएँ नारी के नारीत्व, आत्मविश्वास, स्वाभिमान की जागृति एवं रक्षा तथा पवित्रता और गौरव के स्वीकार के साथ जगह स्त्री-पुरुष सहयोग के अनल अक्षर हैं । कुछ नाम तो चरमत्याग, बलिदान और समर्पणभाव की अप्रतिम मिसाल हैं । आजादी के बाद वेतनभोगी सामाजिक सेवाओं में नारी का प्रवेश अधिकाधिक हुआ यहां तक कि पूर्ववर्जित क्षेत्र पुलिस, न्यायिक व सेना (केवल वायु सेना ) सेवाओं में भी उसकी प्रविष्टि हुई। मगर साथ ही स्वैच्छिक सेवाएं भी अधिकाधिक संस्थाप्रेनी हो गई। एक बार तो ऐसी सेवा संस्थाओं की बाढ़ सी आई लगी। इसके पीछे ईसाई मिशनरियों की प्रेरणा भी कम नवी पर मिशन को तापसियों (Nun) के उत्साह, करुणाभाव, कर्तव्यपराय णता और सच्चाई को ये छू भी न सकीं। यह कहा जा सकता है कि मिशन का मिशन ही भिन्न था। अधिकांश में नवधनाढ्य वर्ग, प्रतिष्ठित प्रशासनिक सेवाएँ व सेना अधिकारियों की पत्नियों के प्रभाव क्षेत्र ऐसे कल्याण तथा राहत सेवा कार्य उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा के प्रभामंडल अधिक बने, सहायता, सेवा-शुश्रूषा के स्रोत कम । निचले तबके तक तो कुछ पहुँच ही नहीं सका। वहीं बात कि रोशनी तो हुई पर फ्लैशलाइट की कि फोटो उतरने के बाद अंधरा ही For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4