Book Title: Samadhimaran Ek Tulnatmak tatha Rachnakal evam Rachayita Author(s): Criticism Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf View full book textPage 6
________________ समाधिमरण (मृत्युवरण) एक तुलनात्मक तथा समीक्षात्मक अध्ययन प्रका० अजीतनाथ जैन धर्मकरण, उदयपुर, वि०सं० २०३९। ८. संयुक्तनिकाय, अनु० जगदीश कश्यप एवं धर्मरक्षित महाबोधि सभा, सारनाथ, बनारस, १९५४, २१/२/४/५/ संयुक्तनिकाय, अनु० जगदीश कश्यप एवं धर्मरक्षित महाबोधि सभा, सारनाथ, बनारस, १९५४, ३४/२/४/४/ १० अतिमानादत्रिक्रोधात्स्नेहाद्वा यदि वा भयात् । उद्बध्नीयात्स्त्री पुमान्वा गतिरेषा विधीयते पूयशोणितसम्पूर्णे अन्धे तमसि मज्जति । षष्टि वर्षसहस्राणि नरकं प्रतिपद्यते । ११. महाभारत आदि पर्व १७९/२० १२. विशेष जानकारी के लिए देखिये धर्मशास्त्र का इतिहास पृ० ४८८ अपरार्क] ५० ५३६ पराशरस्मृति ४/१/२ - १३. धर्मशास्त्र का इतिहास पृ० ४८७ १४. धर्मशास्त्र का इतिहास पृ० ४८८ १५. रत्नकरण्ड श्रावकाचार २२ १६. देखिये (अ) दर्शन और चिन्तन, पं० सुखलालजी, गुजरात, विद्या सभा, अहमदाबाद, १९५७, पृ० ५३६ । (ब) नाभिनन्देत मरणं नाभिनन्देत जीवितम् मनु उद्धृत परमसखा मृत्यु, काका कालेलकर, सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, १९७९, पृ०.२४। (स) भवतृष्णा (जीने की तीव्र इच्छा) और विभवतृष्णा (मरने की तीव्र इच्छा) बुद्ध ने साधक को इन दोनों से बचने का निर्देश किया है। (द) जीवियं नाभिकंखेज्जा मरणं नावि पत्थए । १७. मरणपडियार भूवा एसा एवं च ण मरणानिमित्ता जह गंडछे अकिरिआ णो आयविराहणारूपा । Jain Education International १८. १९. - ओधनियुक्ति ४७ २०. श्रीअमरभारती जैन संस्कृति की साधना, प्रका० सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, मार्च १९६५ पृ० २६ । तुलना कीजिए-विसुद्धिमग्ग १ / १३३ । २१. दर्शन और चिन्तन, पं०सुखलाल संघवी, गुजरात विद्या सभा, अहमदाबाद, १९५७, खण्ड २ पृ० ५३३-३४। २२. संभावितस्य चाकीर्तिमरणदतिरिच्यते । गीता, गीता प्रेस, गोरखपुर, वि०सं० २०१८, २ / ३४ । २३. परमसखा मृत्यु, काका कालेलकर, प्रका० सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, १९७९, पृ० ३१ २४. वही, काका कालेलकर, प्रका० सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, १९७९, पृ० २६ । पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म भूमिका परमसखा मृत्यु, काका कालेलकर, प्रका० सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, १९७९, पृ० १९। पाश्चात्य आचार विज्ञान का आलोचनात्मक अध्ययन पृ० २७३ । परमसखा मृत्यु, काका कालेलकर, प्रका० सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली, १९७९, पृ० ४३ । गीता २ / ३४ । परमसखा मृत्यु, काका कालेलकर, प्रका० सस्ता साहित्य मण्डल, नई दिल्ली १९७९ पृ० ४३। २५. २६. ४२५ -उद्धृत दर्शन और चिन्तन, पं० सुखलाल जी संघवी, गुजरात विधानसभा, अहमदाबाद, १९५७, पृ० ५३६ । श्री अमर भारती मार्च १९६५ पृ० २६ संजमहे देहो घारिज्जइ सो कओ उ तदमावे। संजम फाइनिमित्तं देह परिपालणा इट्ठा ।। २७. २८. २९. ३०. For Private & Personal Use Only 3 www.jainelibrary.org.Page Navigation
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