Book Title: Samadhimaran Author(s): Chandanmuni Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 1
________________ only onto No 0+0+ समाधिमरण श्री चन्दन मुनि [ युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के शिष्य ] जन्मना और मरना अनादिकाल से संसारी जीव के पीछे लगा हुआ है । जन्मे और न मरे - ऐसा कभी संभव नहीं है । वस्तुतः जन्मना मरने का ही द्योतक है और मरना जन्मने की ही पूर्व भूमिका है। कहीं से मरा है तभी तो कहीं उत्पन्न हुआ है। केवल रूपान्तरण है। एक उर्दू शायर ने क्या खूब कहा है- ना जन्म कुछ ना मौत कुछ, बस एक बात है । किसी की आंख लग गई, किसी की खुल गई ॥ " परन्तु जीना कैसे चाहिए और मरना कैसे चाहिए ? इसका ज्ञान किसी विरल व्यक्ति को ही होता है। अंग्रेजी में कहावत है— 'लाइफ इज एन आर्ट' जीना एक कला है। लेकिन ज्ञानी कहते हैं— मरना बहुत बड़ी कला है, क्योंकि पूरे जीवन का वही निचोड़ है। पूरी समुद्री यात्रा का वही किनारा है। पूरी पढ़ाई का वही परीक्षा परिणाम है। जैन गगनांगण के ज्योतिर्धर आचार्य पूज्यपाद स्वामी 'मृत्युमहोत्सव' नाम के ग्रन्थ में कहते हैं— तप्तस्य तपसश्चापि पालितस्य व्रतस्य च । पठितस्य श्रुतस्यापि फलं मृत्युः समाधिना ।। अर्थात् तपे हुए तप का, पाले हुए व्रत का और पढ़े हुए ज्ञान का समाधियुक्त मृत्यु ही फल है । यदि मृत्यु असमाधि स्थिति में हुई तो तप, व्रत और श्रुत से क्या लाभ है ? यथार्थ में पूरी साधना का समाधिमरण ही फल है । Jain Education International भगवान महावीर ने सकाम-मरण तथा अकाम-मरण, ऐसे मृत्यु के दो भेद किए हैं। अकाम-मरण तो बारबार हुआ और होता ही जा रहा है, परन्तु सकाम-मरण किसी विरल साधक का ही होता है। अकाम मरण से तात्पर्य है— मृत्यु को नहीं चाहना तीव्र जिजीविषा के वश मृत्यु का नाम सुनते ही रोमांच हो जाना । हाय मृत्यु आ गई, अब मेरा क्या होगा ? मेरे बाल-बच्चों का क्या होगा ? कैसे भी मैं जीवित रहूँ — ऐसा उपाय करो, ऐसी दवा दो, ऐसे अनुभवी डाक्टर या वैद्य को बुलाओ इस प्रकार दिलगीर हो जाना, अपने आपको असहाय महसूस करना, अकाम-मृत्यु के लक्षण हैं। बाल अज्ञानियों की प्राय: ऐसी ही मृत्यु होती है। वे रोते ही आते हैं और रोते ही जाते हैं। सुना है, अरवी के विख्यात सायर से सादी एक बार किसी बच्चे के जन्मोत्सव पर होने वाले प्रीतिभोज में सम्मिलित हुए। लोग हँसते- खिलते खाना खा रहे थे, उवर नवजात शिशु तीक्ष्ण स्वर से रो रहा था । इस स्थिति पर शेख सादी के दिमाग में एक भाव उभर आया । शायरी में बाँधते हुए उन्होंने कहा जब तुम आये जगत में जग हँसमुख तुम रोये । ऐसी करनी कर चलो, तुम हँसमुख जग रोये ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.Page Navigation
1 2 3