Book Title: Samadhi Sadhna Aur Siddhi
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust

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Page 24
________________ समाधि-साधना और सिद्धि 19 उपसंहार सारांश रूप में कहें तो आधि, व्याधि और उपाधि से रहित आत्मा के निर्मल परिणामों का नाम समाधि है। आधि अर्थात् मानसिक चिन्ता, व्यांधि अर्थात् शारीरिक रोग और उपाधि अर्थात् पर के कर्तृत्व का बोझ – समाधि इन तीनों से रहित आत्मा की वह निर्मल परिणति है, जिसमें न कोई चिन्ता है, न रोग है और न पर के कर्तृत्व का भार ही है। एकदम निराकुल, परम शांत, अत्यन्त निर्भय और निशंक भाव से जीवन जीने की कला ही समाधि है। यह समाधि संवेग के बिना संभव नहीं और संवेग अर्थात् संसार से उदासी सम्यग्दर्शन के बिना संभव नहीं। सम्यग्दर्शन के लिए तत्त्वाभ्यास और भेदविज्ञान अनिवार्य है। जिसे समाधि द्वारा सुखद जीवन जीना आता है, वही व्यक्ति सल्लेखना द्वारा मृत्यु को महोत्सव बना सकता है, वही शान्तिपूर्वक मरण का वरण कर सकता है। समाधि और सल्लेखना को और भी सरल शब्दों में परिभाषित करें तो हम यह कह सकते हैं कि “समाधि समता भाव से सुख-शान्तिपूर्वक जीवन जीने की कला है और सल्लेखना मृत्यु को महोत्सव बनाने का क्रान्तिकारी कदम है, मानव जीवन को सार्थक और सफल करने का एक अनोखा अभियान है।” इति शुभं। ॐ नमः . -TRA

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