Book Title: Samadhi Sadhna Aur Siddhi
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust

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Page 22
________________ 17 समाधि-साधना और सिद्धि १. पण्डित-पण्डित मरण :- केवली भगवान के देह विसर्जन को पण्डित-पण्डित मरण कहते हैं। इस मरण के बाद जीव पुनः जन्म धारण नहीं करता। २. पण्डित मरण :- यह मरण छठवें गुणस्थानवर्ती मुनिराजों के होता है। एकबार ऐसा मरण होने पर दो-तीन भव में ही मुक्ति हो जाती है। ३. बाल पण्डित मरण – यह मरण देशसंयमी के होता है। इस मरण के होने पर सोलहवें स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। ४. बाल मरण :- यह मरण चतुर्थगुणस्थानवर्ती अविरत सम्यग्दृष्टि के होता है। इस मरण से प्रायः स्वर्ग की प्राप्ति होती है। ५. बाल-बाल मरण :- यह मरण मिथ्यादृष्टि के होता है। यह मरण करने वाले अपनी-अपनी लेश्या व कषाय के अनुसार चारों गतियों के पात्र होते हैं। पाँचवें बाल-बाल मरण को छोड़कर उक्त चारों ही मरण समाधिपूर्वक ही होते हैं, परन्तु स्वरूप की स्थिरता और परिणामों की विशुद्धता अपनी-अपनी योग्यतानुसार होती है। समाधिधारक यह विचार करता है कि - "जो दुःख मुझे अभी है, इससे भी अनंतगुणे दुःख मैंने इस जगत में अनन्तबार भोगें हैं, फिर भी आत्मा का कुछ भी नहीं बिगड़ा। अतः इस थोड़े से दुःख से क्या घबराना? यदि पीड़ा चिन्तन आर्तध्यान होगा तो फिर नये दुःख के बीज पड़ जायेंगे। अतः इस पीड़ा पर से अपना उपयोग हटाकर मैं अपने उपयोग को पीड़ा से हटाता हूँ। इससे पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा तो होगी ही, नवीन कर्मों का बंध भी नहीं होगा। जो असाता कर्म उदय में दुःख आया है, उसे सहना तो पड़ेगा ही, यदि समतापूर्वक सह लेंगे और तत्त्वज्ञान के बल पर संक्लेश परिणामों से बचे रहेंगे तथा आत्मा की

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