Book Title: Sakshta Upanyaskar Amrutlal Nagar Author(s): Premshankar Tripathi Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf View full book textPage 3
________________ है और आडम्बर के साथ-साथ धार्मिक विकृतियों का विरोध किया मूल्यों पर आधारित है। नागरजी ने प्रेमचंद की तुलना में आध्यात्मिक मूल्यों पर अधिक बल दिया है। प्रेमचंद के उपन्यासों में आध्यात्मिक मूल्य भी सामाजिक मूल्यों के आवरण में ही व्यक्त हुए हैं। नागरजी प्रगतिशील विचारधारा के समर्थक होते हुए भी आस्तिक रचनाकार रहे हैं। बाबा रामजीदास के सत्संग से आस्तिकता के प्रति उनकी आस्था और प्रबल हुई थी। नागरजी ने आस्तिक जीवन मूल्यों की प्रवंचनाओं का विरोध तो किया है किन्तु आस्तिकता को नकारा नहीं है। नागरजी की मान्यता थी कि सच्चे अर्थों में संत वही है जो वास्तव में सत्यनिष्ठ है। नागरजी ने आज के युग में व्यावहारिक, आध्यात्मिक मूल्यों के निरूपण के लिए सोमाहुति, सूर, तुलसी जैसे प्राचीन चरित्रों को ही नहीं बाबा रामजी जैसे समसामयिक संत की अवतारणा भी अपने भिन्न-भिन्न उपन्यासों के चरित्र के रूप में की है। इस प्रकार उन्होंने व्यवहार के स्तर पर आस्तिक चेतनायुक्त संतत्व की आवश्यकता पर बल दिया प्रेमचंद और नागरजी के मध्य अंतर विवेचित करने का उद्देश्य किसी को बड़ा या छोटा बनाना नहीं है अपितु यह प्रतिपादित करना है कि घटना प्रधान, तिलस्मी, जासूसी उपन्यासों के युग से आगे बढ़कर प्रेमचंद ने हिन्दी उपन्यास साहित्य को जो नवीन दिशा दी... वही गतिशीलता कुछ नवीन विशेषताओं के साथ प्रेमचन्दोत्तर काल में अमृतलाल नागर में परिलक्षित होती है। ____ निष्कर्षतः प्रेमचंद परम्परा को समृद्ध एवं सुदृढ़ करने के साथ-साथ उसे गतिशीलता प्रदान करने में नागरजी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने न केवल परम्परा को नवीन आयाम प्रदान किये अपितु हिन्दी उपन्यास साहित्य को भी स्वस्थ सामाजिक परिप्रेक्ष्य की उच्च भूमिका पर प्रतिष्ठित किया। हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / 38 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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