Book Title: Sagar Jain Vidya Bharti Part 2
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 5
________________ अनुक्रमणिका १-४५ ४६ - ५८ १. अर्धमागधी आगम साहित्य २. प्राचीन जैन आगमों में चार्वाक दर्शन का प्रस्तुतीकरण एवं समीक्षा ३. महावीर के समकालीन विभिन्न आत्मवाद एवं ___ उसमें जैन आत्मवाद का वैशिष्ट्य ४. सकारात्मक अहिंसा की भूमिका ५. तीर्थंकर और ईश्वर के सम्प्रत्ययों का तुलनात्मक विवेचन ६. जैन धर्म में भक्ति का स्थान ७. मन - शक्ति, स्वरूप और साधना : एक विश्लेषण ८. जैन दर्शन में नैतिकता की सापेक्षता ६. सदाचार के शाश्वत मानदण्ड १०. जैन धर्म का लेश्या-सिद्धान्त : एक विमर्श ११. प्रज्ञापुरुष पं० जगन्नाथ जी उपाध्याय की दृष्टि में बुद्ध व्यक्ति नहीं प्रक्रिया १२. पार्श्वनाथ विद्यापीठ के नए प्रकाशन ८७ - ६२ ६३ - ६६ ६७ - १२२ १२३ – १३३ १३४ - १४६ १५० - १६५ १६६ - १६६ १७० - १७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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