Book Title: Sadhna Ke Do Adarsh Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 2
________________ बचकर बीच का मार्ग दिखाया है। जीवन के दोनों किनारों से बचकर उनकी विचारगंगा जीवन के बीचों-बीच प्रवाहित हुई है । समन्वयवाद या अनेकान्तवाद की सुन्दर नौका जब चिन्तन के सागर में बहने को हो, तब डूबने का तो कोई प्रश्न ही नहीं रहता। उनकी कान्त-प्रधान वाणी से सत्य की उपलब्धि होती है । भगवान् की उसी वाणी को गणधरों ने इस रूप में प्रकट किया है- "सन्ति एगेहिं भिक्खुहि, गारत्या संजमुत्तरा । गारोह सम्वेहि, साहवो संजमुत्तरा ॥" - उत्तरा, ५, २०. कुछ try to fभक्षु ऐसे हैं कि साधना के मार्ग पर लड़खड़ाते चल रहे हैं, उन्हें दृष्टि नहीं मिली, किन्तु फिर भी चले जा रहे हैं। जीवन के अन्तर्लक्ष्यों को नहीं पाकर प्रोधसंज्ञा से ही चले जा रहे हैं-- एक के पीछे एक ! दृष्टि तो किसी एक को मिली, जिसे मार्ग का ज्ञान प्राप्त हुआ। वह चला उस मार्ग पर । बाकी साधक तो उस महान् साधक के पीछे चलते रहे, केवल उसकी वाणी के सहारे । और कालान्तर में आगे आने वाले, उसकी वाणी को भी भूलते चले गए। उनकी दशा गांव के उस कुत्ते के समान है कि गाँव में चोर आया । जिस घर पर वह गया, उस घर का कुत्ता चोर को देखते ही भोंकने लग गया । अब क्या था, आसपास में दूसरे घरों के कुत्ते भी उस घर के कुत्ते की भौंकने की आवाज सुनकर भौंकने लग गए। इन भौंकनेवाले कुत्तों में से चोर को तो देखा उस पहले कुत्ते ने, परन्तु भौंकना अन्य सारे कुत्तों ने शुरू कर दिया। इस प्रकार चोर को देखनेवाला द्रष्टा कुत्ता तो एक ही है, अन्य सब भौंकना सुनकर केवल भौंकनेवाले हैं, द्रष्टा नहीं हैं । यदि दूसरे कुत्तों से भौंकने का कारण पूछा जाए तो यही कहेंगे कि मालूम नहीं, क्या बात है ? उधर से भौंकने की आवाज आई, इसलिए हम भौंक रहे हैं । परन्तु, उनसे पूछा जाए कि क्या तुमने चोर को देखा है, वह चोर कैसा है, तो वे क्या बता सकेंगे ? चूंकि वे तो सिर्फ उस द्रष्टा कुत्ते की आवाज पर ही भौंके जा रहे हैं। बात यह जरूर कड़वी है, जो संभवतः कुछ साथियों के मन को चोट कर सकती है, किन्तु सत्य यही है कि हजारों rasi के झुंड में कोई एक ही ऐसा गुरु था, जो द्रष्टा था और जिसे श्रात्मा-परमात्मा के उस दिव्य स्वरूप का साक्षात्कार हुआ था । सत्य की भूमिका को छूनेवाला वह एक ही था, और वह भी संसार का एक ही जीव था, किन्तु प्रबुद्ध जागृत जीव था । संसार के arat गुरु-ले तो बस देखा-देखी भौंकनेवाले हैं। सत्य का साक्षात्कार और चीज है, और सत्य के साक्षात्कार का दंभ और चीज देखा-देखी का योग, योग नहीं, रोग है । और वह रोग साधक को गला देता है। कहा भी है- 'देखादेखी साधे जोग, छीजे काया बाढ़े रोग ।' साधना का मानदण्ड : संसार में एक दिन भगवान् पार्श्वनाथ और भगवान् महावीर आए। उन्होंने देखा कि चारों ओर ये भौंकनेवाले ही शोर मचा रहे हैं- कुछ गृहस्थ के वेष में, तो कुछ साधु के वेष में। उन्होंने पूछा - "क्यों भाई, तुम किसलिए भौंक रहे हो ? क्या तुम्हें कुछ दिखाई पड़ा ? वासना, लोभ, क्रोध, राग-द्वेष का चोर तुमने कहीं देखा है ?" तो वे सब चुप हो गये । जो अपनी आँख बन्द कर सिर्फ एक-दूसरे के अनुकरण पर चल रहे थे, उन्हें टोका --- "ऐ भौंकनेवालो ! पहले देखो कि तुम किसके लिए भौंक रहे हो। उस चोर की सत्ता कहाँ है ? किस रूप में है वह ? " बात यह है कि जो साधना के मार्ग पर दौड़ते तो जा रहे हैं, किन्तु जिन्हें अपनी मंजिल के बारे में कोई ज्ञान नहीं है, उन्हीं साधुत्रों के लिए भगवान् महावीर के दर्शन में कहा गया है कि वे जन्म-जन्मान्तर में साधु का बाना कितनी ही बार ले चुके हैं। यदि १३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only पन्ना समिक्ee धम्मं www.jainelibrary.org.Page Navigation
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