Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 02 Sootrakrut Churni Aagam 2
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 22
________________ आगम (०२) प्रत सूत्रांक [] दीप अनुक्रम [] भाग-2 “सूत्रकृत” - अंगसूत्र-२ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], निर्युक्तिः [१-३५], मूलं [-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र [०२], अंग सूत्र -[०२] "सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णिः | संघातादि सूत्रक ङ्गचूर्णिः 1-0 11 DIST A Sun and करोति, एवं ओरालियम्स, वेउच्यिउत्तरकरणं उत्तरवेउब्वियरूवं विउब्वेति, आधारए णत्थि एताणि, इमं वा आहारगस्स | गमणादीणि, अथवा पंचेन्द्रियाणि - सोइंदियाईणि मूलकरणं, सोइदियं कलंबुगापुप्फसंठितं, एयं मूलकरणं उत्तरकरणं तु कण्णावेहवालाईकरणादि, अथवा यदुपहतस्योपकरणस्य तदुपकारित्वात् य उपक्रमः क्रियते विसेण ओसधेण वा, एवं सेमाणंपि, यावन्तीन्द्रि याणि सन्ताणि शोभानिमितं अर्थोपलब्धिनिमित्तं वा उत्तरगुणता निवर्त्तयति, शोभा वर्णस्कन्धादि, अर्थोपलब्धिस्तु बाधिर्यतिमिरप्रसुप्यादीनां उपक्रमतः पुनः स्वस्थकरणं, अथवा दबिंदियाणि परिणामियाणि विसेण अगदेण वर्णउपयोगवाताय भवति, अथवा विममेव विविणा उपजुञ्जमानं रसायणीभवति, औषधग्रामाश्च ये शरीरोपकारिणः पथ्यभोजनक्रियाविशेषाः सर्व एव चाऽऽहारः, • अथवा स्वरभेदवर्ण भेदकरणानि । इदानीं एतेसिं चैव पंचण्डं सरीराणं तिविधं करणं भवति, तंजा-संघायणाकरणं परिमाडणाकरणं संघाय परिसाडणाकरणं, तेयाकम्माणं संघातणवअं दुविधं करणं, एताणि तिष्णिवि करणाणि कालतो मग्गिजंति, तत्थोरालियसंघातकरणं एगसमयियं, जं पढमसमयोत्रवण्णगस्म, जहा तेल्ले उग्गाहिमओ छूढो तप्पढमताए आदियति, सेससमएस सिणेहं गिण्हइवि मुंचवि, एवं जीवोवि उबवतो पढमे समए एगंतसो गेण्हति ओरालियम रीरपाउग्गाणि दव्वाणि, ण पुण किंचिवि विमुयति, परिसाडणावि समओ चैत्र, सो मरणकालसमए एगंतसो चैव मुंचति, मज्झिमे काले किंचि गेण्हति किंचि मुंचति, सो जहणोणं खुड्डागं भवग्गहणं तिममयूर्ण, उक्कोसेणं तिष्णि पलिओवमाणि समयुजाणि, किह पुण खुड्डागभवग्गणं तिसमयूर्ण भवति ?, उच्यते, 'दो विग्गमि ममया समयो संघातणाऍ तेहूणं । खुड्डागभवग्गणं सव्वजहणो ठिती कालो ॥१॥ उक्कोसो समग्रूणो जो सो संघातणासमयहीणो । किह ण दुममयविहीणी साडणसमयेऽत्रणीतंमि || २ || भण्णति भवचरिमंमिवि समए क्षुद्र भवग्रहणस्य समय गणना [22] 118 11

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