Book Title: Sacchayika Battisi Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ फेब्रुआरी - २०१२ १०३ घणी भौम परसिद्धि घणि, ओ इसराइ साचल मात तणी ॥१४॥ काई डाइण साइण छल न करइ, देवी नाम लीयां यमदूत डरै । भूत प्रेत पाइ विमुह भरै, ओ इसराइ ताइ जो मुख उच्चरै ॥१५।। महाईत उपद्रव मलवाई, कीधै जपनउ व्यापइ काई ।। धूप खेवि देवि त्यां ध्याइ, वल्ली ज्यां कुशल घरे वाई ॥१६।। रिण रावल सम- सुरराणी, धायायां भय भाजइ धणीयाणी । आपै साथी तुरज आणी, सन्त सादे आवै सुरताणी ॥१७॥ भमता सुणि वीनती दिशि भाले, तुरका भय मोह दूरे टाले । प्रणपत्ति करे पूजूं प्रहकाले, रावली पाडीआ रखवाले ॥१८॥ वेरीदल आवंता वाडे परगट संत सादे पाधारै ।। आडी फिर पाछा ऊतारे, अपणा जन सरणइ औरै ॥१९॥ जढ नर जंगल देश जठै, पारै गढ़ झगपृहौ बहू कूड़ पठइ । कोई चिगड़ चगड़ सन्मुख कठरै, तूं राखइ माता शरम तठै ॥२०॥ जिण पोहरै चोर साह सम जाणि, साधां पिछाणं सइ न्य(न्या)णि । ऊपरि करी संतां आए साणी पोहरै इणि राखी अणी पाणी ॥२१॥ सुभ जन नाम लयां साजा, कोडि साढ़ा तीन जन सुखकाजा । तइं देश कोट गढ दे ताजा, रांकाथी तुरत किया राजा ॥२२॥ मन मान्या मही मेह वरसावै, नव-नव अन्न करसण नीपजावै । परजा राजा सही सुख पावइ, अई रजा तुझ सिर त्यां आवै ॥२३।। त्यां आगली वाजै तुझ त्वरा, खल भाजै खोहिण दल पुरा । सवरीं गर जीपइ भडी शूरा, ते प्रगट प्रहार खत्री पूरा ॥२४॥ तूं बाली प्रौढ़ी नै तरुणी, गुण सुन्दरी हंसा गयगमणी ।। रूप अनोपम सुरराणी जय-जय जगदम्बा जगजननी ॥२५॥ गिरि शिखर विराजइ तू गाजइ, वडथानी थानी झल्लरी वाजइ । झतरालि नयर नयर झाजइ, रिधिमण्डे देवल तूं राजइ ॥२६।। विचर विचर तूं ब्रह्माणी, समरी सिध साधक सुरराणी । अटवी उद्यान वन आयसाणी, जल थल महियल जंगल जाणी ॥२७॥ तूं नीर समीर नदी नालइ, वह ताजण राखइ वरसालइ । त्रिपुरा मत्थ गय भय टालइ, देवी सिंघण आणइ दे ठालइ ॥२८॥Page Navigation
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