Book Title: Sacchayika Battisi
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ १०२ अनुसन्धान-५८ (राग वेलावल प्रभाती) मन सुध ज्यां महिर करै माता, दिन चढ़ती दौलति त्यां दाता । विघन हरै त्यां वरदाता, सेवकजन पूरवै सुखसाता ॥१॥ अंगि केसरि कस्तूरी अरचइ, चोवा चन्दन चावण्ड चरचइ । देवी धूप खेवी घृत दीप रचइ, पांमइ जिण घरी ऋद्धिसिद्धि परचइ ॥२॥ पूजइ फलफूलां प्रात समइ नवनेवज ढोए कंध नमइ । मांगइ सुत अरज करइ मनमइ जित घरइ सुख लीनी सुत जनमइ ॥३॥ माहरै चिन्तामणि तूं माता वलि कामधेनु विसुविख्याता । तूं सुरनर त्रिभुवन त्राता दिन-दिन मनवांछित फल दाता ॥४॥ गुण उज्जवल व्रण सांवल गाता साची तूं सिचियाय तूं सुखदाता । तूं मात तात सज्जन भ्राता अधिका महियलि तो अवदाता ॥५॥ कर चरण अठील जड्या काठा, माता परताप झड्या माठा । सामी दण्ड छंडि लख साठा, इम सोम दुयण कीयउ पराठा ॥६॥ जण विषमी रीति मारग जावै, आडा नडउ उज्जड़ रन आवै । तेथि तिस्या नर तो ध्यावै, परघल जल शीतल त्यां पावै ॥७॥ वाट घाट वेला विषमी समरयां माई आवे तुरत समी। गाढा अरि चोरट दुरि गमी अपणाइत दाखइ नजरि अमी ॥८॥ माता अन्न भण्डार भरै मोटो, तूं तिठां धन नावै तोटो । खल ग्रह निजबल न करै खोटो, आई जो नर पकड़इच तो ओटो ॥९॥ ताहरा गुण गाइ कहूं इतरो, जगी दे धनराय उपल जितरो । धणीयाणी मोपरी महिर धरो, खासो हूं पाना जाद करो ॥१०॥ देवी-सेवि मो दरसण दीजै कुबुद्धि केवी कां कीजै । माहरी चित चिन्ता मेटीजै, माता मुझ वीनती मानीजै ॥११॥ पांमीजै माय पाय तो परसै, दूझै घरी गायां सैंस दसे । अपणी माय पुरसै मन उल्लसै, दही दूध जीमीजै रवि दरसे ॥१२॥ कोई रोग व्याधि प्रभवै न कदा, गुडगुम्बड पीड न होइ मुदा । दुःखदालिद दूर हरै दिलदा, सुख उपजै देवी नाम सदा ॥१३॥ धणीय पमइ सांचौ धींग धणी, कवि अन्य गरज सरै न कीणी ।

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10