Book Title: Rushabhdev se Vartaman tak Jain Dharm ki Sthiti Author(s): Bansidhar Pandit Publisher: Z_Bansidhar_Pandit_Abhinandan_Granth_012047.pdf View full book textPage 7
________________ 54 : सरस्वती-वरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ लेख केवल जैन मान्यताके अनुसार प्रतिपादित धर्मके बारेमें लिखा गया है / इसलिए दूसरी धार्मिक समष्टियोंकी ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। हमें आश्चर्य होता है कि क्या जैन समष्टि और क्या दूसरी धार्मिक समष्टियाँ, सभी अपने द्वारा मान्य धर्मको हो राष्ट्रधर्म तथा विश्वधर्म कहनेका साहस करती हैं, परन्तु उनका धर्म किस ढंगसे राष्ट्रका उत्थान एवं विश्वका कल्याण करने में सहायक हो सकता है और हमें इसके लिए अपनी वर्तमान दुष्प्रवृत्तियोंको दूर करनेके लिये कितने प्रयासकी जरूरत है, इसकी ओर किसीका भी लक्ष्य नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7