Book Title: Rishibhashit A Study
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 94
________________ Rishibhashit : A Study (ज्ञातव्य है कि प्रकीर्णकों की संख्या के सम्बन्ध में विधिमार्गप्रपा में भी मतैक्य नहीं है । 'सज्झायपट्ठवण विही' पृ० 54 पर 11 अंग, 12 उपांग, 6 छेद, 4 मूल एवं 2 चूलिका सूत्र के घटाने पर लगभग 21 प्रकीर्णकों के नाम मिलते हैं। जबकि पृ० 57-58 पर ऋषिभाषित सहित 15 प्रकीर्णकों का उल्लेख है।) 6. (अ) कालियसुयं च इसिभासियाई तइयो य सूरपण्णत्ती। सव्वो य दिट्टिवायो चउत्थो होई अणुनोगो ॥ 124 ॥ (मू० भा०) तथा ऋषिभाषितानि उत्तराध्ययनादीनि 'तृतीयश्च' कालानुयोगः, -आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति : पृ० 206 (ब) आवस्सगस्स दसकालिअस्स तह उत्तरज्झमायारे । सूयगडे निज्जुत्ति वुच्छामि तहा दसाणं च ॥ कप्पस्स य निज्जुत्ति ववहारस्सेव परमणिउणस्म । सूरिअपण्णत्तीए वुच्छं इसिभासियाणं च ॥ -अावश्यकनियुक्ति 84-85 7. पहावागरणदसाणं दस अज्झयणा पन्नता, तंजहा-उवमा, संखा, इसिभासियाई, आय रियभासिताई, महावीरभासिताई, खोमपसिणाई, कोमलपसिणाई अदागपसिणाइं, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई। -ठाणंगसुत्ते, दसमं अज्झयणं दसट्ठाणं (महावीर जैन विद्यालय संस्करण पृ० 311) 8. चोतालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुताभासिया पण्णत्ता । -समवायंगसुत्त-44 प्राहंसु महापुरिसा पुव्विं तत्ततवोधणा । उदएण सिद्धिमावन्ना तत्थ मंदो विसीयति ।। 1 ।। प्रभुंजिया नमी विदेही, रामपुत्ते य भुंजिया। बाहुए उदगं भोच्चा तहा नारायणे रिसी ॥ 2 ॥ आसिते दविले चेव दीवायण महारिसी । पारासरे दगं भोच्चा बीयाणि हरियाणि य ।। 3 ।। एते पुव्वं महापुरिसा आहिता इह सम्मता। . भोच्चा बीमोदगं सिद्धा इति मेयमणुस्सुअं ।। 4 ।। -सूत्रकृतांग 1/3/4/1-4 10. Sutrakritang-2/6/1-3,7,9. 11. Bhagwati, shatak-15 12. Upasakdashang chapter 6 and 7 13. (a) Suttanipat-32 Sabhiya-sutta (b) Deeghnikaya, Samanjafal-sutta Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106