Book Title: Rishibhashit A Study
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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APPENDIX
Foot Notes : 1. (अ) से कि कालियं ? कालियं अणेगविहं पण्णत्त ।
तं जहा उत्तरज्झयणाइं 1, दसानो 2, कप्पो 3, ववहारो 4, निसीहं 5, महानिसीहं 6, इसिभासियाई 7, जंबुद्दीवपण्णत्ती 8, दीवसागरपण्णत्ती । -नन्दिसूत्र ८४ ।
--(महावीर विद्यालय, बम्बई 1968) (ब) नमो तेसिं खमासमणाणं जेहिं इमं वाइअं अंगबाहिरं कालिग्रं भगवंतं ।
तं जहा1. उत्तरज्झयणाई, 2. दसायो, 3. कप्पो, 4. ववहारो, 5. इसिभासिग्राइं, 6. निसीहं 7. महानिसीहं........ । (ज्ञातव्य है कि पक्खियसुत्त में अंग-बाह्य ग्रन्थों की सूची में 28 उत्कालिक और 36 कालिक कुल 64 ग्रन्थों के नाम हैं । इनमें 6 आवश्यक और 12 अंग मिलाने से कुल ८२ की संख्या होती है, लगभग यही सूची विधिमार्गप्रपा में भी उपलब्ध होती है।)
-पक्खियसुत्त (पृ० 79)
(देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड सीरिज क्रमांक ६६) 2. अंगबाह्यमनेकविधम् । तद्यथा-सामायिकं, चतुर्विंशति स्तवः, वन्दनं, प्रतिक्रमणं, काय
व्युत्सर्गः, प्रत्याख्यानं, दशवैकालिकं, उत्तराध्यायाः, दशाः, कल्पव्यवहारौ, निशीथं, ऋषिभाषितानीत्येवमादि ।
-तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् (स्वोपज्ञभाष्य) 1/20
(देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड, क्रम संख्या 56) 3. तथा ऋषिभाषितानि उत्तराध्ययनादीनि... ।
-आवश्यक नियुक्तिः, हारिभद्रीयवृत्ति पृ० 206 4. ऋषिभाषितानां च देवेन्द्रस्तवादीनां नियुक्तिं ....... ।
-आवश्यक नियुक्ति, हारिभद्रीय वृत्ति पृ० 41 इसिभासियाइं पणयालीसं अज्झयणाई कालियाई, तेसु दिण 45 निविएहि अणागाढजोगो । अण्णे भणंति उत्तरज्झयणेसु चेव एयाइं अंतब्भवंति ।
विधिमार्गप्रपा पृ० 58 देविदत्थयमाई पइण्णगा होंति इगिगनिविएण । इसिभासिय अज्झयणा आयंबिलकालतिगसज्झा ।। 61 ।। केसि चि मए अंतब्भवंति एयाइं उत्तरज्झयणे । पणयालीस दिणेहि केसि वि जोगो अणागाढो ।। 62 ॥ विधिमार्गप्रपा पृ० 62
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