Book Title: Ratnastok Mnjusha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ 4. मद्दवे-मार्दव, नम्रता, अहंकार का त्याग। 5. लाघवे-द्रव्य से भण्डोपकरण रूप उपधि और भाव से कषाय रूप उपधि थोड़ी होना। 6. सच्चे-सच्चाई से, प्रामाणिकता से बोलना व आचरण करना। 7. संजमे-शरीर, मन और इन्द्रियों को वश में रखना, नियम में रखना। 8. तवे-आत्म-शक्ति बढ़े, इच्छा-निरोध की शक्ति बढ़े, मनोबल दृढ़ होवे, उस विधि से उपवास आदि तप करना। 9. चियाए-(अकिंचन) ममता का त्याग करना। 10. बंभचेरवासे-शुद्ध आचार पाले, मैथुन से सम्पूर्ण निवृत्ति करना। दस प्रकार की समाचारी___ 1. आवस्सिया-उपाश्रय से बाहर जाना हो तब बड़े मुनि से अर्ज करे कि मुझे उक्त कार्य के लिए बाहर जाना जरूरी है तथा बाहर जाते समय तीन बार आवस्सिया कहे। 2. निसीहिया-अपने कार्य से निवृत्त होकर उपाश्रय में पीछे लौटते समय तीन बार ‘निस्सही' कहे अर्थात्- “मैं अपने काम से निवृत्त होकर आ गया हूँ।" 64

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98